लौड़े की तकदीर-2

‘मैं निहारिका बोल रही हूँ।’
मैं गुस्से में बोला- क्यों फोन किया..? एक बार समझ में नहीं आता क्या.. दुबारा फोन मत करना।
वो- प्लीज़ आशु.. एक बार बात कर लो.. मैं तुम्हें कुछ पुनीत के बारे में बताना चाहती हूँ।

मैं- बोलो जल्दी से.. वक्त नहीं है मेरे पास..
वो- तुम्हें पता है.. उस दिन जब मिले थे तब क्या हुआ था?
मैं- हाँ पता है..
वो- बताओ पुनीत ने मेरे बारे में क्या कहा था?

मैं गुस्से में बोला- कैसी लड़की हो तुम.. अपनी उस रात के बारे में मुझसे सुनना चाहती हो?
वो- तुम बताओ तो.. उसने जो भी कहा..
मैं- तो सुनो..
अब मैं खुल कर गुस्से में कहने लगा था।

पता नहीं मैं उस वक्त उससे कुछ भी ऊटपटांग कहता चला गया- उसने सही बताया था कि तुम्हारे नीचे चूत पर एक तिल है.. जो एक लण्ड से तुम्हारी चूत की प्यास नहीं बुझती.. एक ब्वॉय-फ्रेण्ड के होते हुए भी तुमने पुनीत से रिश्ता बना लिया?

वो भी तैश में आते हुए बोली- हाँ है तिल.. तुम मुझे यह बताओ कि पुनीत ने तुमसे और क्या कहा.. उस दिन कमरे में क्या-क्या हुआ.. उस बारे में तुम मुझे खुल कर पूरा बताओ।

मैं गुस्से में बोला- पागल हो क्या.. जो ऐसा पूछ रही हो?
वो- आशु.. तुम्हें तुम्हारी दोस्ती की कसम.. प्लीज़ बताओ।
मैं- उसने कहा कि तुमने उसके साथ खूब सेक्स किया।

वो- नहीं किया..
अब मैं चौंक उठा कि माजरा क्या है।

मैं- क्या..?? उसने बताया था कि उसने तुम्हें एक घंटे तक चोदा.. बहुत बुरे तरीके से चोदा.. उसने तुम्हारी चूत फाड़ दी।
मैं आवेश में ये सब खुल कर निहारिका से कह गया।

वो- आशु.. मैं बताऊँ.. क्या हुआ था उस दिन.. दरअसल तुम्हारा दोस्त सेक्स के काबिल ही नहीं है।
मैं हैरान हो गया- क्या बक रही हो?? उसे तो हमने सेक्स गोली भी दी थी।
वो- मुझे पता है.. उसने मेरे सामने ही खाई थी।

मैं शॉक्ड था।

वो- उसने मुझे बहुत गरम किया था.. उस दिन बस मैंने उसके लण्ड को पकड़ा ही था कि उसका पानी छूट गया।
अब मैं हैरान था.. कुछ ना बोलते हुए उसे सुन रहा था.. मेरी साँसें रुक सी गई थीं।

उसने आगे बताना जारी रखा।
‘हम दोनों कमरे में पहुँचे.. आपस में गले मिले.. उसने मेरे सामने ही गोली खाई.. पर उस से कुछ नहीं हुआ। मैंने बहुत ट्राइ की कि उसका लण्ड खड़ा हो जाए.. मैंने खूब चूसा.. पर उसका लण्ड खड़ा ही नहीं हुआ। मैंने उससे कहा कि पुनीत अपना इलाज कराओ.. उस बात पर वो गुस्सा हो गया और मुझे रंडी कहने लगा। बाद मैं जब वो मुझे छोड़ने गया.. तो मैं उसे जबरन डॉक्टर के पास ले कर गई और दवाई दिलाई।’

मैं चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था और अब मुझे समझ में आया कि ये दोनों अलग क्यों हुए।
वो- एक और बात पुनीत ने तुम्हें बताई होगी।
मैं- क्या..? और कुछ तो नहीं बताया उसने।
वो- तो सुनो अगर सुन सकते हो।

मैं किसी बम फूटने का इंतज़ार ही कर रहा था कि उसने कहा।
‘मैं शादी-शुदा हूँ..’
यह सुनकर तो मानो मेरे पैरों तले ज़मीन ही निकल गई हो।

मैं गुस्से में चिल्ला कर बोला- तू पक्की रंडी है.. जो शादी के बाद दूसरों से चुदवाती फिरती है।
वो- आशु.. तुम जो मर्ज़ी समझो.. इस वक़्त मैं तुम्हें नहीं समझा सकती.. यह बात भी बाद में बताऊँगी… पर मैंने पुनीत से प्यार किया था और मेरा कोई ब्वॉय-फ्रेण्ड नहीं था। जिसे वो ब्वॉय-फ्रेण्ड समझ रहा था.. वो मेरे पति का फोन आया था।

उस दिन के बाद जो हुआ.. वो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

मैं निहारिका की बात सुन कर एकदम सन्न हो गया था.. मेरे कानों में उसके रोने की आवाज आ रही थी। मैंने सिर्फ दबी जुबान में उससे कहा- निहारिका मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हें गलत समझा।

इस पर उसका एक ही जबाव था जो मुझे अन्दर तक हिला गया।
उसने कहा- माफी मांगने से क्या मेरी चूत की आग बुझ जाएगी..? अगर तुम मुझे खुश देखना चाहते हो तो तुरंत मेरे पास आ जाओ.. नहीं तो मैं तुम्हारे पास वहीं आती हूँ।

मेरे मुँह से सिर्फ इतना निकला- ठीक है यहीं आ जाओ।
‘कल आती हूँ।’ उसने फोन काट दिया।

फोन कट जाने के बाद भी मैं मूर्खों की तरह पलकें झपका रहा था.. मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। मैंने इस वक्त अपनी पुरानी गर्ल-फ्रेण्ड बीयर के आगोश में जाना ठीक समझा और फ्रिज में रखी दो बोतलों को गट-गट डकार गया और औंधा हो कर सो गया।

दूसरे दिन 12 बजे तक निहारिका मेरे कमरे पर आ गई थी.. मैंने उसे अन्दर बुलाया और हम दोनों एक-दूसरे को सिर्फ मूक आँखों से देखते रहे।
मुझे अब भी समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ।
आखिर उसने चुप्पी तोड़ी और मुझसे कहा- आशु आई लव यू!

मैं फिर एकदम से हतप्रभ हो उठा। मैं तो सोच रहा था कि निहारिका मुझसे पुनीत की बीमारी का इलाज को लेकर कुछ कहना चाहती होगी.. पर यहाँ तो लण्ड बदलने की स्कीम दिख रही थी।

मैं भी कुछ नहीं बोला सोचता रहा। उसने मुझसे फिर कहा- क्या तुम मुझे पसन्द नहीं करते हो?

मैं जरा मुँहफट किस्म का था.. मैंने सोचा आज आर या पार का हो जाने दो और मैंने फ्रिज खोला उसमें से बीयर की बोतल निकाली और निहारिका से पूछा- लोगी?
‘हाँ..’
मैंने एक और बोतल निकाली और हम दोनों ने बीयर के नशे को अपनी खामोशी को तोड़ने का जरिया बनाया।
करीब आधा घंटे बाद मैं तीन बीयर डकार चुका था और निहारिका दो बोतल पी चुकी थी।

हम दोनों एक-दूसरे की आँखों में वासना की नजरों से देख रहे थे.. तभी निहारिका ने अपने दुपट्टे को हटाया और गहरे गले वाले कुरते से आधे झांकते हुए मम्मों को और उठाते हुए मुझसे कहा- चोदेगा मुझे?

मैंने आव देखा न ताव और उसको दबोच लिया.. बस हम दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए। कब हमारे जिस्मों से कपड़े प्याज के छिलकों की मानिंद उतरते चले गए इस बात का कोई अहसास ही नहीं हुआ।

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मैंने अपने खड़े लौड़े को उसकी लपलपाती चूत में घुसेड़ कर धकापेल चुदाई करना शुरू की और निहारिका की सीत्कारों ने मुझे और अधिक उत्तेजित कर दिया था।

करीब आधा घंटे के इस खेल के बाद जब हम दोनों स्खलित हुए.. तब मुझे होश आया और मैंने फिर उससे कहा- भले ही मेरे लौड़े की तकदीर में तुम्हारी चूत से ओपनिंग लिखी थी.. पर आज भी मैं तुमको अपनी गर्ल-फ्रेण्ड के रूप में नहीं स्वीकारता हूँ।

निहारिका की आँखों में आँसू थे.. जिनका कोई हल मेरे पास नहीं था.. मुझे भले ही निहारिका का जिस्म मस्त लगा था पर वो आज भी मेरे दिल में अपना स्थान नहीं बना पाई थी।

दोस्तों ये कहानी एकदम सत्य है और निहारिका से अब मेरा कोई जुड़ाव नहीं है मुझे नहीं मालूम कि अब वो किधर है।

उसके साथ मेरे लौड़े की शुरुआत की कहानी मुझे हमेशा याद आती है।

आप सभी के क्या कमेंट्स हैं.. मुझे जानने की अधिक जरूरत तो नहीं है पर हाँ.. इतना अवश्य जानना चाहता हूँ कि निहारिका मेरे मन में क्यूँ नहीं समा सकी.. मैंने तो कई बार अपने दिल से पूछा है.. पर मुझे कोई उत्तर नहीं मिला.. शायद आपके मन में कोई जबाव हो।
आपका आशु
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