जूसी रानी का इनाम-3

जूसी रानी ने वही ब्रा और पेंटी का सेट पहन रखा था, वही जूते जो उसको आज दिलाये थे और हाथों में एकदम मॉडल वाले स्टाइल में नया वाला बैग लटका रखा था और वो बिस्तर पर खड़ी हुई थी।
कमरे की सभी बत्तियां बंद थीं और सिर्फ एक टेबल लैंप जल रहा था जिसकी मद्धम रोशनी में जूसी रानी जन्नत से उतरी हुई कोई हूर लग रही थी।

इस हूर के देखने के बाद कौन खुद पर काबू रख सकता है… तेज़ हवस की आंधी मेरे तन बदन में दौड़ गई।

इतने में जूसी रानी ने एक घुटने पर बैठ कर दूसरी टांग आगे को फैला दी जिस से उस खूबसूरत हाई हील सैंडल में उसका बेहद हसीन पांव मेरे सामने आ गया।

यूँ तो मेरी सभी अड़तीस रानियों के पैर बहुत सुन्दर हैं क्योंकि जिसके पैर सुन्दर नहीं होते वो मेरी रानी नहीं बनती।
परंतु जूसी रानी के पांव की बात कुछ और ही है, उसके पैर इतने सुन्दर लग रहे थे कि यदि किसी जूते की कंपनी को विज्ञापन देना हो जूसी रानी के पैर का इस्तेमाल ख़ुशी ख़ुशी कर लेती।

मैंने रानी का पांव थामा और बड़े प्यार से बेसाख्ता चूमने लगा।
जूते सहित पैर चूमने चाटने में बहुत आनन्द आ रहा था। रानी की उँगलियों के बीच की जगह पर जीभ फिराई तो रानी ने मस्ता के सीत्कारें भरनी शुरू कर दीं।
साथ ही वो बैठ गई और दूसरा पैर भी आगे फैला दिया।

दोनों पैर चूमते चूमते मेरा दिल ही नहीं भर रहा था।

रानी भयंकर काम वासना से पीड़ित होकर टाँगें इधर उधर हिला रही थी। छटपटा रही थी और गालियां बकने लगी थी परंतु मैं उसके पैर चाटे जा रहा था। तब तक मैंने सैंडल उतार के फेंक दिए थे क्योंकि सैंडल पहने हुए रानी के मैं तलवे नहीं चाट पा रहा था।

जब जूसी रानी का सब्र का बांध टूट गया तो वो लपक के नीचे को सरक आई और थरथराती हुई वाणी में बोली- तू राजे एकदम सीधा लेट जा… मैं तेरी तरफ अपने चूतड़ रखूंगी… तू चूसे जाना!

मैंने तपाक से जूसी रानी की पेंटी उतारी और दूर फेंक दी, दूसरे झटके में उसकी ब्रा का भी वही हश्र हुआ।
अब जूसी रानी दुबारा मादरजात नंगी हो चुकी थी।

रानी ने मेरी छाती पर हाथ रखकर मुझे लेट जाने दिया और वो खुद मेरी छाती पर चढ़ के बैठ गई, अपनी गांड उठाकर मेरे मुंह की तरफ की और झुक के मेरा तन्नाया हुआ लंड सहलाने लगी।

मैं उसके कोमल हाथों के स्पर्श से लहक गया।

रानी ने लंड के मुंह पर उभरी हुई एक बूंद को चाट लिया और खाल पीछे कर के सुपारा नंगा करके मुंह में ले लिया।

इधर मैंने पहले तो उन लज़ीज़ नितंबों पर जीभ फिराई और फिर मैंने उसकी गांड के छेद को जीभ खूब गीली करके चाटा।

जूसी रानी के मुंह से मस्ती के मारे सुपारी ही बाहर निकल पड़ी और एक गहरी आह उसके मुंह से उभरी।

मैंने जीभ को और गीला किया और उसे गांड के छेद में घुसा दिया।
अब तो जूसी रानी ने एक किलकारी मारी, उसे उत्तेजना में यह भी ध्यान न रहा कि इतनी ऊँची आवाज़ में किलकारी आस पड़ोस में सुनी जा सकती है।

बड़ी तेज़ी से उसने अपने गोरे बेहद खूबसूरत चूतड़ हिलाये तो मैंने जीभ और अंदर घुसा दी।
फिर मैंने अपने दोनों अंगूठे रानी की चूत में घुसा दिये और ऊपर को भग्नासा को हौले से दबाया।
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लंड चूसना भूल के जूसी रानी धड़ाम से झड़ी।
मेरे अंगूठे चूत के रस में सराबोर हो गये तो मैंने अपनी जीभ गांड से निकाल कर चूत में घुसा दी और खूब अच्छे से भीतर घुमाई।

जूसी रानी मज़े में फिर से झड़ी और मेरा मुंह रस से भर गया।
माशा अल्लाह !!! चूतामृत से मेरी तो आत्मा तक तर गई।

जूसी रानी अब धकाधक अपनी चूत मेरे मुंह से मसले जा रही थी। उसने दुबारा से लंड का टोपा चूसना शुरू कर दिया था। वो झड़े जा रही थी और सुपारी चूसे जा रही थी।

फिर वो शांत हो कर मेरे ऊपर पड़ गई और लेटे लेटे लंड को चूसती रही।

जब सारा रस खत्म हो गया तो मैंने दुबारा जीभ उसकी गांड में घुसा दी।

गांड चुसवाने का ज़बरदस्त आनन्द उसकी सहनशक्ति से आगे निकल गया।
हाय हाय हाय करती हुई जूसी रानी ने बड़े ज़ोरों से लंड को मुंह में आगे पीछे आगे पीछे करना आरंभ कर दिया।

कभी लंड को बाहर करती और ‘हाय मेरी मां… हाय मैं मर गई…’ कहती और फिर लंड को पूरा गले तक घुसा लेती।
जितनी जीभ गांड में जा सकती थी, उतनी घुसा के मैं उसकी जीभ से ही गांड मार रहा था।

मैं भी अब झड़ने वाला हो चुका था, एक सुरसुरी बड़ी तेज़ी से मेरी रीढ़ की हड्डी में इधरा उधर आ जा रही थी और मेरे अंडों में दवाब इतना बढ़ गया था कि बस फटने को ही थे।

रानी दनादन लंड को चूसे जा रही थी।

अचानक मेरे गोलों में एक पटाखा सा फूटा और मैं झड़ गया।
लावा फूट फूट के रानी के मुंह में गिरता चला गया और उसने सारा वीर्य मज़े से चटखारे लेते हुए निगल लिया।

तभी रानी भी एक बार फिर से झड़ी और बड़े ज़ोरों से झड़ी, रस की फुहार मेरी ठुड्डी पर आई, मैंने तुरंत जीभ गांड से निकाली और मचल मचल के चूत से बहता हुआ रस पीता गया।

रस रिसना बन्द होने के बाद भी मैंने चूत चूसनी बन्द नहीं की, बल्कि बुर में जीभ घुमा घुमा जो थोड़ा बहुत रस चूत में बचा रह गया था वो भी ले लिया।

हम काफी देर तक ऐसे ही पड़े रहे।
रानी को झपकी भी लग गई।
ऐसा होता है यारो, जब लड़की कई बार झड़ती है तो उसे अक्सर नींद आ जाती है।

इसके बाद सिर्फ यह हुआ कि आधे पौने घंटे के बाद मैंने जूसी रानी को जगाया और कहा- चल डार्लिंग अब डिनर भी तो कर लें!

रानी कसमसाती हुई उठी और मस्ती से भरी आवाज़ में बोली- हाँ मैं करती हूँ खाना गर्म… अच्छा ही हुआ न जो डिनर पैक करवा लिया… बहनचोद इतना खाना खा के तू कर पाता इतनी मस्त चुदाई… चुदाई तो खाली पेट ही सबसे ज़्यादा मज़ा देती है… क्यों कमीने?
मैंने सिर हिलाकर हामी भरी।

यह तो सही है कि भरे पेट चुदाई उतना आनन्द नहीं देती जितना कि खाली पेट…
धक्के भी ज़ोरदार लगते हैं, चूसने चाटने में भी मज़ा आता है।

चुदाई के बाद की मस्ती में लहकते हुए नंगे बदन में जूसी रानी को देख कर फिर से दिल बेईमान होने लगा।
मैंने रानी को चूतड़ों से जकड़ कर फिर से बिस्तर पर गिरा दिया और लपक के चूत से होंठ लगा दिए।

कुछ देर तो जूसी रानी ने छूटने की चेष्टा की लेकिन शीघ्र ही कमीनी को मज़ा आने लगा तो टाँगें टाइट करके उसने मेरा सिर अपनी रेशमी जांघों में भींच लिया और लगी चूतड़ हिलाने।

साथ साथ बोले भी जा रही थी- राजे मां के लौड़े… आह आह आह… बहनचोद मस्त चुसाई करता है तू हरामी… अहहह आह्हः… साले कुत्ते… आह आह आह… हाय राम… हाय हाय हाय… और ज़ोर से जीभ चला मादरचोद… साले चोदूराम… हरामी चुसूराम… आह आह आह… कमीने का दिल कभी भरता ही नहीं।

चूत से रस खूब तेज़ बहने लगा था।
हरामज़ादी जूसी रानी इतना अधिक मात्रा में रस बहाती थी कि मैं चूत के नीचे बैठ कर रस को अंजलि में भर के पी सकता था।
तभी तो उसका नाम मैंने जूसी रानी रखा था।

यह बात दिमाग में आते ही मेरा मन उड़ कर अंजलि रानी तक जा पहुंचा।
अंजलि रानी मेरी अड़तीस रानियों की फ़ौज की महारानी है।

उसमें न जाने क्या विशेष बात है कि जो भी उसके संपर्क में आता है वो अंजलि रानी का ऐसा दीवाना हो जाता है कि रानी उसे कठपुतली की तरह नचा सकती है।
मुझ पर और सब रानियों पर तो उसका एकछत्र राज्य है ही।

सब उसके कहे को इसलिए ख़ुशी ख़ुशी मानते हैं कि सबके दिल से आवाज़ आती है कि महारानी अंजलि का कहा मान लें।
हरामज़ादी जितनी ज़बरदस्त चुदक्कड़ है उतनी ही तेज़ बुद्धि भी।
लव यू अंजलि रानी !!!!!!

तभी जूसी रानी ने एक ज़ोरदार धक्का लगाया तो मेरा ध्यान महारानी अंजलि से हट के वापिस जूसी रानी की तेज़ी से रसाती हुई चूत में आ गया।

जूसी रानी ने मेरे बाल जकड़ लिए थे और अब वो चुदास से भरपूर तेज़ तेज़ जांघें हिला रही थी, टाँगें खूब टाइट करके माँ की लौड़ी कभी दाएं तो कभी बाएं हिलाती, तो कभी अचानक ज़ोर से ऊपर को उछाल देती।

गालियों की बौछार भी इतनी ही तेज़ थी जितनी चूत से झड़ते रस की ‘राजे…बहनचोद जल्दी से लन्ड कर मेरी तरफ… हरामी इतनी देर क्यों लगा रहा है… दे लौड़ा मुंह में… जल्दी कर मादरचोद… आह आह आह!’ जूसी रानी चिल्लाई और बड़ी तेज़ी से चूतड़ इधर उधर मटकाए।

एक क्षण के लिए मैंने रानी की टाँगें खोल के चूत से मुंह हटाया, हुमक के 69 के पोज़ में रानी की बगल में लेट गया और फिर से मुंह चूत से चिपका दिया।

लन्ड की बेक़रार रानी ने भी तुरंत ही लौड़ा मुंह में ले लिया और कस के पहले की तरह टाँगें भींच लीं।
रानी अब दनादन धक्के पेल रही थी और मचल मचल के लन्ड चूस रही थी। इधर मैंने एक हाथ उसके चूचुक तक ले जाकर कभी एक कभी दूसरा ज़ोर ज़ोर से निचोड़ना चालू कर दिया।

रानी मदमस्त हो चुकी थी, अब झड़ने के नज़दीक थी और इतने तेज़ी से लन्ड चूस रही थी कि मैं भी झड़ने वाला हो गया था।

मैंने चूची से हाथ हटा के जूसी रानी की भगनासा को उंगली से रगड़ना शुरू किया।
भगनासा पर रगड़ लगते ही रानी का बाँध टूट गया और ऊँची ऊँची आवाज़ में किलकारी मारती हुई रानी चरम सीमा पार हो गई, चूत से रस का फुव्वारा छूटा जो काफी समय तक चलता रहा।

स्खलन के रस को पीकर मैं इतना उत्तेजित हो गया कि रानी के मुंह में दस बारह तगड़े धक्के ठोके और झड़ गया।
मस्ती में डूबी रानी लौड़े से झड़ती तमाम सफेदी पीती चली गई और लावा की बरसात ख़त्म होने के बाद उसने लन्ड की नसें दबा दबा के लौड़े में फंसी हुई बची खुची मलाई भी निकाल डाली।

इसके बाद यारो, हमने आपस में लिपटे लिपटे लेट कर थोड़ी देर आराम किया और फिर दोनों नंगे ही किचन में चले गए।

जूसी रानी ने खाना गर्म किया और मैंने फ्रिज से पानी निकाल के डाइनिंग टेबल पर रखा। खाना बहुत स्वादिष्ट था और इतनी चुदाई के बाद हम दोनों को भूख भी खुल के लगी हुई थी।

नंगे खाना खाने का एक अलग ही मज़ा है जिसको बताया नहीं जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।

इस प्रकार से इस मस्त दिन की समाप्ति हुई।
डिनर के बाद हम लोग बेडरूम में नंगे ही एक दूसरे से लिपट कर सो गए।

वैसे आदतन मैं रानी के चुचुक के बीच मुंह रखकर सोता हूँ। रानी ने लेट कर मेरा मुंह दोनों मम्मों के बीच लगा लिया और कुछ ही पलों में हम गहरी नींद में खो गए।

तो यह था जूसी रानी ने जो मुझे इनाम दिया था।

यूँ तो वो रोज़ ही चुदाई करती है कम से कम एक बार और अक्सर दो या तीन बार, लेकिन आज के माहौल में जो उसने मुझे आनन्द दिया वो सचमुच एक इनाम ही था।
कुछ उम्दा किस्म की वाइन का असर, कुछ रोमांटिक मूड का असर, कुछ इन सब के कारण असामान्य रूप से बढ़ी हुई कामोत्तेजना!

यारो, जूसी रानी का इनाम कैसा लगा लिखियेगा ज़रूर!
चूत निवास
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