बदलते रिश्ते -4

रामलाल बोला- बहू, तेरी तो वाकयी बहुत ही चुस्त है। कुदरत ने बड़ी ही फुर्सत में गढ़ी होगी तेरी योनि।
अनीता बोली- आपका हथियार कौन सा कम गजब का है। पिता जी, सच बताइए, सासू जी के अलावा और कितनी औरतों की फाड़ी है आपके इस मोटे लट्ठे ने?

रामलाल अनीता की योनि में लगातार जोरों के धक्के लगाता हुआ बोला- मैंने कभी इस बात का हिसाब नहीं लगाया। हाँ, तुझे एक बात से सावधान कर दूं। मेरे-तेरे बीच के इन संबधों की तेरी पड़ोसन जिठानी को को जरा भी भनक न लग जाए। वह बड़ी ही छिनाल किस्म की औरत है, हमें सारे में बदनाम करके ही छोड़ेगी।’
‘नहीं पिता जी, मैं क्या पागल हूँ जो किसी को भी इस बात की जरा भी भनक लगने दूँगी। वैसे, आप एक बात बताओ, क्या यह औरत आपसे बची हुई है?’

रामलाल जोरों से हंस पड़ा, बोला- तेरा यह सोचना बिल्कुल सही है बहू, इसने भी मुझसे एक बार नहीं, कितनी ही बार ठुकवाया है। ‘अच्छा, एक बात और पूछनी है आपसे..?’
‘पूछो बहू…’
‘पहली रात को क्या सासू जी आपका यह मोटा हथियार झेल पाई थीं?’

‘अरे कुछ मत पूछ बहू, जब मेरा तेरी सास के साथ ब्याह हुआ था तब उस पर अभी जवानी भी पूरी नहीं चढ़ी थी और मैं 18 साल का। इतना तजुर्बा भी कहाँ था तब मुझे कि पहले उसकी योनि को सहला-सहला कर गर्म करता और जब वह तैयार हो जाती तो मैं उसकी कुंवारी व अनछुई योनि में अपना लिंग धीरे-धीरे सरकाता। मैं तो बेचारी पर एकदम से टूट पड़ा था और उसे नंगी करने उसकी योनि के चिथड़े-चिथड़े कर डाले थे। बस उसकी नाजुक सी चूत फट कर खून के टसूए बहाती रही थी पूरे तीन दिन तक ! अगली बार जब मैंने उसकी ली तो पहले उसे खूब गर्म कर लिया था जिससे वह खुद ही अपने अन्दर डलवाने को राज़ी हो गई।

अनीता तपाक से बोली- जैसे मेरी योनि को सहला-सहला कर उसे आपने खौलती भट्टी बना दिया था आज। पिता जी, इधर का काम चालू रखिये …एक वार, सिर्फ एक बार मेरी सुलगती सुरंग को फाड़ कर रख दीजिये। मैं हमेशा-हमेशा के लिए आपकी दासी बन जाऊँगी।
‘ले बहू, तू भी क्या याद करेगी… तेरा भी कभी किसी मर्द से पाला पड़ा था। आज मुझे रोकना मत, अभी तेरी उफनती जवानी को मसल कर रखे देता हूँ।’

ऐसा कह कर रामलाल अपने मोटे लिंग पर तेल मलकर अनीता पर दुबारा पिला तो अनीता सिर से पैर तक आनन्द में डूब गई। रामलाल के लिंग का मज़ा ही कुछ और था पर वह भी कब हिम्मत हारने वाली थी। अपने ससुर को खूब अपने नितम्बों को उछाल-उछाल कर दे रही थी।
अंतत: लगभग एक घंटे की इस लिंग-योनि की धुआधार लड़ाई में दोनों ही एक साथ झड़ गए और काफी देर तक एक-दूजे के नंगे शरीरों से लिपट कर सोते रहे।

बीच-बीच में दो-तीन वार उनकी आँखें खुलीं तो वही सिलसिला दुबारा शुरू हो गया। उस रात रामलाल ने बहू की चार बार चूत मारी और हर बार में दोनों को ही पहले से दूना मज़ा आया।
अनीता उसी रात से ससुर की पक्की चेली बन गई। अब वह ससुर के खाने-पीने का भी काफी ध्यान रखती थी ताकि उसका फौलादी डंडा पहले की तरह ही मजबूत बना रहे, पति की नपुंसकता की अब उसे जरा भी फ़िक्र न थी।
हाँ, इस घटना के बाद रिश्ते जरूर बदल गए थे।

रामलाल सबके सामने अनीता को बहू या बेटी कहकर पुकारता परन्तु एकांत में उसे मेरी रानी, मेरी बुलबुल आदि नामों से संबोधित करता था।
और अनीता समाज के सामने एक लम्बा घूंघट निकाले उसके पैर छूकर ससुर का आशीर्वाद लेती और रात में अपने सारे कपड़े उतार कर उसके आगे टांगें फ़ैला कर पसर जाती थी।
आजकल रामलाल अपनी बहू अनीता के साथ कामक्रीड़ा के लिये मौके ढूंढने में लगा रहता था।

अपने बेटे अनमोल को वह अक्सर विवाह-शादियों में भेजता रहता था ताकि वह अधिक से अधिक रातें अपनी पुत्र-वधू अनीता के साथ बिता सके।
अनीता से यौन-सम्बंध बनाने के बाद से वह पहले की अपेक्षा कुछ और अधिक जवान दिखने लगा था।

कहानी जारी रहेगी।
[email protected]