सुपर स्टार -13

तभी तालियों और सीटियों की आवाज़ ने मुझे जैसे नींद से जगाया हो। उस पैनल के हर सदस्य की आँखें भरी हुई थीं।

तभी एक निर्देशक चल कर मेरे पास आए।

‘शायद इस इंडस्ट्री को तुम्हारी ही तलाश थी। आज इस बॉलीवुड को एक सुपरस्टार मिल गया है। मैं और इंतज़ार नहीं कर सकता। तुम अभी और इसी वक़्त हमारे साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन करोगे।’

फिर उन्होंने पेपर्स मंगवाए और मेरे सामने रख दिए।

‘यह लो पेन..’
कहते हुए उन्होंने पेन मेरे हाथ में दे दिया।

मेरे आंसू अब थम चुके थे, शायद मुझे मेरी मंजिल मिल चुकी थी या मुझे मेरे दर्द का इलाज मिल गया था। मैंने पेपर्स साइन कर दिए। फिर तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्टूडियो गूंज उठा और मुझे मेरा पहला चैक दिया गया।

पांच लाख इक्यावन हज़ार का चैक था यह…
मैं अपने डिटेल्स वहाँ स्टूडियो में लिखवा कर बाहर आ गया। तभी मुझे याद आया कि स्टूडियो में फ़ोन ऑफ करवा दिया गया था। मैंने फ़ोन ऑन किया और निशा को कॉल किया- हैलो.. मैं नक्श बोल रहा हूँ।

निशा- पता है मुझे.. पर कहाँ थे अब तक? तुम्हारा फ़ोन भी ऑफ था सुबह से। फाइलें पहुँचा दी या नहीं?

मैं- अरे थोड़ा सांस तो ले लो। मैं कहीं भागने वाला नहीं हूँ। मेरे पास एक अच्छी खबर है। तुम बस फ्लैट पर पार्टी का इंतज़ाम करो और हाँ.. ये खर्चा मेरी तरफ से रहेगा।

निशा- क्या हुआ..? अब बता भी दो।

मैं- नहीं मैं ये खबर जब तुम्हें बताऊँ तब मैं तुम सबकी शक्लें देखना चाहता हूँ। मैं बस पहुँच ही रहा हूँ.. बाय..!

मैंने फ़ोन काटा और टैक्सी लेकर चल फ्लैट की ओर पड़ा। रास्ते में वाइन शॉप से मंहगी वाली स्कॉच ली और फ्लैट पहुँच गया। मैंने कॉल बेल बजाई और ऐसा लगा कि जैसे सब मेरे इंतज़ार में ही बैठी थीं, उन्होंने तुरंत दरवाज़ा खोला। मैंने बोतल और फाइलें उनके हाथ में दीं और बिना कुछ कहे वाशरूम जाने लगा।

ज्योति ने मुझे पकड़ते हुए कहा- कहाँ जा रहे हो..? पहले बताओ तो सही आज क्या हुआ?
मैं- देख जो हुआ सो हुआ.. पर अभी अगर रोकोगी तो यहीं पर हो जाएगा।
ज्योति- ठीक है.. जल्दी आओ, अब हमसे रुका नहीं जा रहा है।

मैं फ्रेश होकर आया और सोफे पर बैठ गया। तीनों मुझे एकटक से घूरे जा रही थीं।
फिर मैंने एक लम्बी सी अंगड़ाई ली और कहा- यार वो गद्दा आ गया है न..? बहुत नींद आ रही है मुझे।

मेरा इतना कहना था कि सबने मुझे सोफे से नीचे गिरा दिया और मुझ पर चढ़ कर बैठ गईं।

निशा- अब जल्दी से बता दो नहीं तो यही जान ले लूँगी तुम्हारी।
मैं- ठीक है बताता हूँ.. पर पहले हटो तो सही।

सब अपनी जगह बैठ गईं।

‘वो आपने जो लिस्ट मुझे दिया था उसमें सबसे पहला नाम यशराज स्टूडियो का था। सो मैं वहीं गया। वहाँ जाकर मुझे सुभाष जी को फाइलें देनी थीं.. पर वहाँ आज ऑडिशन चल रहे थे और सुभाष जी से मुलाक़ात एक ही शर्त पर हो सकती थी कि अगर मैं किसी तरह अन्दर पहुँच पाता। सो मैंने ऑडिशन का फॉर्म भरा और अन्दर चला गया और फ़ोन अन्दर ऑफ करवा लिया गया था। सुभाष जी कहीं और थे और मुझे सभी कंटेस्टेंट के साथ अलग कमरे में बिठा दिया गया था।

निशा- तो क्या हुआ..? मुद्दे की बात तो बताओ।
मैं- फिर मुझे मजबूरी में ऑडिशन देना पड़ा।
तृष्णा- तो इसमें कौन सी बड़ी बात है।
अब तक सब मुझे घूरे ही जा रही थीं।

तभी मैंने अपना चैक निकाल बीच में रख दिया और कहा- ‘ये है वो बात…’

तृष्णा चैक उठा कर बड़े गौर से देखने लगी। साथ ही ज्योति और निशा भी देख रही थीं।
अब मैं इंतज़ार कर रहा था.. क्या होगा उनके चेहरे का एक्सप्रेशन।
तभी निशा और ज्योति मेरे पैर पकड़ कर वहीं बैठ गईं और तृष्णा मुझे चम्पी देने लग गई।

निशा ने पुराने फिल्मों की हिरोइन की तरह- मेरे प्राणनाथ.. कृपया हमें अपनी चरणों में थोड़ी जगह दे दें। हमारी तो तकदीर ही संवर जाएगी।
ज्योति ने उसी अंदाज़ में- मैं हर रोज़ आपके पैर दबा दिया करूँगी।
तृष्णा- और जब आप थक कर घर आयेंगे.. तब मैं यूँ ही आपके सर की चम्पी कर दिया करूँगी।

मैं ने उन्हीं के अंदाज़ में- आपका इतना प्यार देख कर तो मेरी आँखों में आंसू गए।

‘चलो अब अपनी जगह पर बैठो।’
सब अपनी जगह पर बैठ गईं।

ज्योति- तुम्हें एक्टिंग भी आती है? और तुमने कभी हमें बताया तक नहीं।

मैं- सच कहूँ तो मुझे अब तक नहीं मालूम कि एक्टिंग कहते किसे हैं। लोगों से सुना था कि अगर आप किसी से बड़ी ही सफाई से झूठ कह सकते हो तो आप उतने ही अच्छे एक्टर बन सकते हो.. पर तुम सब तो जानती हो मुझे झूठ कहना तक नहीं आता। मैं कैसे एक्टिंग कर सकता हूँ।

निशा- तो तुमने ऑडिशन दिया कैसे?

मैं- वो मेरे एक्सप्रेशन्स देखना चाहते थे। हंसी, मस्ती, डर, दर्द… इन सब के एक्सप्रेशन मैं कैसे देता हूँ।

मैंने अपनी आँखें बंद की और मैंने हर शब्द के साथ याद किया उन शब्दों से जुड़े हुए अपने बीते लम्हों को और मेरे चेहरे के भाव उसी हिसाब से खुद ब खुद बदलते चले गए.. पर अब तो मुझे एक नई कहानी दी जाएगी और उस झूठी कहानी में भी मुझे ऐसी जान डालनी होगी कि दर्शकों को यकीन हो जाए कि ये बिल्कुल सच है। मैं ये सब कैसे कर पाऊँगा।

निशा- तुम यहाँ क्यूँ आए थे।
मैं- मैं तो अपने आप से भाग रहा था.. मैं अपने दर्द से पीछा छुड़ा रहा था।
निशा- क्या आज भी तुम तृषा को याद करते हो?

मैं- यह कैसा सवाल है..? अगर याद ना आती तो हर बार इस नाम के साथ मेरी आँखें नम कैसे हो जातीं?
निशा- और अगर मैं कहूँ कि तुम्हारे दर्द का इलाज़ एक्टिंग ही है तो?
मैं- वो कैसे?

निशा- जैसे आज तुमने आँखें बंद करके उन लम्हों को जीना शुरू किया। वैसे ही हर दिन जब तुम्हें कोई स्क्रिप्ट मिले तो भूल जाना कि तुम नक्श हो। निर्देशक के ‘एक्शन’ कहने के साथ ही तुम उस स्क्रिप्ट के किरदार हो यही याद रखना और जब वो पैकअप कहे.. तब तुम वापस आ जाना।

मैं- और मैं वापस आना ही ना चाहूँ तो?

निशा- मतलब?

मैं- जब मेरे दर्द का इलाज़ खुद को भूलना ही है.. तो मैं भला कुछ पलों के लिए खुद को क्यूँ भूलूं। मैं तो हमेशा के लिए भूल सकता हूँ।

निशा- ऐसे में खुद की तकलीफ तो कम कर लोगे.. पर जो लोग तुम्हें जानते हैं उन्हें दर्द दे जाओगे।
मैं- अब जो भी हो.. मैं ऐसे घुट-घुट कर नहीं जी सकता।
तृष्णा- अरे क्यूँ तुम लोग इतने सीरियस हो रहे हो। इतना ख़ुशी का मौका है और तुम लोग अपनी ही बातें लेकर बैठे हो। आज तो पूरी रात हंगामा होगा..

फिर वो अपने फ़ोन को स्पीकर से जोड़ कर तेज़ आवाज़ में गाने बजाने लगी।

फिर क्या था, हम सब गाने की धुन पर नाच रहे थे। उछल-उछल कर हम सब ने कमरे की हालत खराब कर दी। उस पूरी रात किसी ने मुझे सोने नहीं दिया। रात भर मुझे बीच में बिठा नॉन स्टॉप बातें करती रहीं। सुबह के साढ़े पांच बजे मुझे छोड़ कर सब अपने कमरे में गईं.. तब जाकर मैं सो पाया।
नौ बजे ज्योति की आवाज़ से मेरी आँख खुली।

ज्योति- उठो.. स्टूडियो नहीं जाना है क्या?
मैंने अंगड़ाई लेते हुए कहा- कम से कम नींद तो पूरी होने दे।
ज्योति- अरे मेरे सुपरस्टार.. अब से कम सोने की आदत डाल लो.. अब सोने का वक़्त गया।

मैंने घड़ी की तरफ देखा तो टाइम हो चुका था और आज मैं लेट नहीं होना चाहता था। सो मैं फ्रेश होने चला गया, नहा कर कपड़े बदले जो ऑनलाइन शॉपिंग से जो हमने कपड़े खरीदे थे वो पार्सल कल शाम ही आ गया था।

आज मैं एक नई जिंदगी की शुरुआत करने जा रहा था या दूसरे लफ्जों में अपने आप को इस दुनिया में खोने जा रहा था।

आज मुझे कहानी सुनाने को बुलाया गया था। मैंने टैक्सी की और पहुँच गया स्टूडियो।

आज वहीं गेट कीपर जो मुझे कल अन्दर आने से रोक रहा था, आज मुझे सलाम कर रहा था। मैं अन्दर पहुँच गया। सुभाष जी मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे। मैं उनके साथ एक अलग कमरे में चला गया।

सुभाष जी- चाय कॉफ़ी कुछ लेंगे आप?
मैं- जी नहीं। फिलहाल तो कहानी पर ही ध्यान दे दूँ। बाद में हम साथ में लंच कर लेंगे।
सुभाष जी- जैसी आपकी मर्ज़ी।

उन्होंने कहानी सुनाना शुरू कर दिया।

‘ये कहानी है एक लड़के की.. जिसके माँ-बाप का देहाँत बचपन में ही हो गया था। उसे बचपन से ही अपना ख्याल रखने की आदत थी.. उसके पास इतनी दौलत थी कि उसकी खुद की जिंदगी तो आराम से गुज़र सकती थी.. पर उसे अगर कुछ कमी थी तो बस प्यार की। बचपन में जब से एक्सीडेंट में उसके परिवार वाले चले गए थे.. तब से ही वो हर माँ-बाप में खुद के माँ-बाप को देखता। बिना प्यार की परवरिश से उसे एक मानसिक बीमारी हो जाती है ‘स्विच पर्सनालिटी डिसऑर्डर।’ ये एक ऐसी बीमारी है.. जिसमें एक ही इंसान अपने जीवन में दो अलग-अलग किरदार निभाता है। जिसका एक पहलू तो प्यार की तलाश में तड़फता रहता है.. पर वहीं दूसरा पहलू हर दिन गर्लफ्रेंड बदलता है।

कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब उस लड़के को एक ही परिवार की दो बहनों से प्यार हो जाता है।’
मैं उन्हें रोकता हुआ बोलने लगा- दो लड़कियों से एक साथ सच्चा प्यार..!

कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं।
कहानी जारी है।
[email protected]