ससुर और बहू की कामवासना और चुदाई-3

जब बेटे की शादी की चर्चा चली, कई एक जगह से रिश्ते आये. रानी (मेरी धर्मपत्नी) ने अदिति नाम की एक लड़की पसन्द की.
जब लड़की देखने जाने की बात आई तो पहले तो मैंने खुद जाने से मना कर दिया कि पराई लड़की को क्या देखना; आखिर कल को मेरी बेटी भी तो है उसे कोई नापसंद करके चला जाय तो हम पे क्या बीतेगी, यही सब बातें सोच के मैंने अपनी होने वाली बहू को देखने जाने से मना कर दिया.

मेरे बेटे को होने वाली पत्नी और मेरी बीवी को होने वाली बहू पसंद आ जाए बस. और सामने वालों को हमारा घर परिवार हमारा बेटा पसंद आ जाए बस. मुझे रुपया दान दहेज़ कुछ नहीं चाहिए था. बस बेटा खुश रहे मेरा. ईश्वर का दिया सब कुछ है हमारे पास… वैसे भी बेटा तो बाहर जॉब करता है शादी के बाद अपनी दुल्हन को ले के निकल लेगा इसलिए फैसला हमने अपने इकलौते बेटे पर और उसकी माँ पर ही छोड़ दिया.

लेकिन सबके दबाव में मुझे भी लड़की देखने जाना ही पड़ा. मैं अपनी पत्नी और बेटे बिटिया के साथ गया भी लड़की देखने; लेकिन सच बताऊं ईश्वर गवाह है कि मैंने अपनी होने वाली बहू को देखा ही नहीं. हाँ, यूं ही उचटती सी नज़र कभी उसके ऊपर पड़ी हो तो अलग बात है लेकिन नजर भर के, पसंद नापसंद करने के आशय से मैंने अदिति बिटिया को कभी भी नहीं परखा.

खैर, बात बन गई और शादी भी हो गयी. हमारी बहू घर आ गई. अदिति बहू की विनम्रता, सदाचरण संस्कार देख कर मैं खुश हो गया.
बहूरानी ने घर गृहस्थी रसोई आदि के कामों से सभी का दिल जीत लिया.

बेटे की शादी के कोई साल भर बाद मेरी बिटिया की शादी भी हो गयी और वो हंसी ख़ुशी विदा हो के अपनी ससुराल चली गई.

अब, मेरी और बहूरानी के अनैतिक सेक्स संबंधों की शुरुआत यहीं से होती है.

हुआ कुछ यूं कि बेटी की विदाई के दूसरे या तीसरे दिन की बात है. अधिकतर मेहमान तो विदा हो चुके थे लेकिन अभी भी घर मेहमानों से भरा हुआ था. बिटिया की शादी में मैं पिछले महीने भर से चकरघिन्नी बना हुआ था, अब कितने काम होते हैं, लड़की के पिता को क्या क्या देखना होता है ये तो आप पाठक गण सब जानते ही हैं. इश्वर की कृपा से सब सकुशल निपट चुका था.

बिटिया के विदा होने के बाद तीसरे दिन की बात है शायद, रात के साढ़े ग्यारह से ऊपर का टाइम हो रहा था. अधिकतर मेहमान जहाँ तहाँ सोये पड़े थे. मैंने पूरे घर का चक्कर लगाया लेकिन मुझे खुद सोने के लिए कोई जगह नहीं मिल रही थी. तभी मेरे मन में तीसरी मंजिल पर बनी उस कोठरी का ख्याल आया जहाँ हम लोग बेकार का सामान रखते थे और वहाँ को आता जाता भी नहीं
था. अतः मैंने वहीं सोने का निश्चय किया और दो गद्दे और तकिया लेकर ऊपर कोठरी में चला गया.

कोठरी में बत्ती जलाई तो जली नहीं, शायद वहाँ का बल्ब कब का फ्यूज हो चुका था. जैसे तैसे मैंने वहाँ बिखरा सामान खिसका के अपना बिस्तर लगाया और दरवाजा भीतर से बंद करने को हुआ तो देखा की अन्दर की चटकनी भी टूटी पड़ी है. अतः मैं ऐसे ही बिस्तर बिछा के लेट गया और किवाड़ यूं हीं भिड़ा दिए.

बिस्तर पर लेटा तो बदन में थकावट के साथ साथ सेक्स की सुरसुरी उठने लगी लंड अंगड़ाई लेने लगा. आखिर बीवी को चोदे हुए महीने भर से ऊपर हो चुका था; मैंने यूं ही अपनी चड्डी में हाथ घुसा के लंड को सहलाना शुरू किया. कुछ ही पलों में मेरा लंड तन गया. अब मुठ तो मारनी ही थी तो मैंने अपने सारे कपड़े उतार डाले और नंगा ही लेट कर अपने लंड को प्यार से दुलारने लगा.

ऐसे करते करते कोई पांच छः मिनट ही बीते होंगे, मैं अपनी फुल मस्ती में था, कि कोठरी का दरवाजा धीरे से खुला और कोई साया भीतर घुसा और उसने किवाड़ बंद कर के मेरे पास बैठ गया. फिर अंधेरे में कपड़ों की सरसराहट से मुझे कुछ यूं लगा कि वो साया स्त्री या पुरुष जो भी रहा हो, वो अपने कपड़े उतार रहा है.

कोई आधे मिनट बाद ही किसी स्त्री का नग्न शरीर मुझसे लिपट गया.

“सो गये क्या जानू… सॉरी राजा मैं लेट हो गयी आने में!” वो बोली और मेरे नंगे जिस्म को छाती से नीचे तक सहलाया और मेरे खड़े लंड पर अपनी नाजुक उंगलियाँ लपेट के इसे मुट्ठी में दबाया.

“हाय राम, जानू, आपने तो मेरे आने के पहले ही अपना हथियार तैयार कर के रखा है. लगता है आज मेरी पिंकी की खैर नहीं. पूरे सत्ताईस दिन बाद आज मेरी पिंकी की प्यास बुझेगी”
वो बोली और मेरे सख्त लंड को मुठियाने लगी जिससे वो और भी अकड़ गया.

इस स्त्री की आवाज सुन के मुझ पर तो जैसे वज्रपात हो गया. मुझे काटो तो खून नहीं. आवाज मेरी बहूरानी अदिति की थी और वो मेरा लंड पकड़ के सहलाये जा रही थी.

“सॉरी, जानू, आने में देर हो गयी. बड़ी देर में सब लोग सोये हैं तब जा के दबे पांव आई हूँ.” वो बोलीं. फिर बहूरानी का मादरजात नंगा जिस्म मेरे नंगे बदन से लिपट गया और वो मेरे ऊपर चढ़ गयीं और मेरे होंठ चूसने लगीं साथ में अपनी चूत मेरे लंड पर रगड़ने लगीं.

“हे भगवान् मुझे मौत आ जाये. मुझे इसी पल उठा लो भोलेनाथ!” मेरे मन से करुण पुकार उठी.
जिस बहूरानी को मैंने हमेशा अपनी सगी बेटी जैसी ही समझा, जिसकी तरफ मैंने कभी नजर भर के नहीं देखा, मेरी वही कुलवधू मेरे घर की लाज, मुझ पिता समान व्यक्ति के नंगे जिस्म से अपना नंगा जिस्म रगड़ते हुये मेरे लंड पर अपनी गीली चूत घिस रही थी.

“कुछ बोलो तो सही मेरे राजा. पता है आप नाराज हो मुझसे क्योंकि मैं देर से आई!” बहूरानी बोलीं और मेरे ऊपर से थोड़ा उठ कर मेरे लंड को अपनी चूत के छेद से सटा कर जोर दे के नीचे बैठने लगीं. इसके पहले कि मेरा लंड बहूरानी की चूत में समा जाता मैंने बहूरानी को एक तरफ धकेल दिया और करवट बदल ली.

“उफ्फ मान भी जाओ अब. आओ ना समा जाओ मुझमे और कुचल डालो मुझे अच्छे से” बहूरानी ने फिर से मेरा लंड अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया.

(मित्रो, यहाँ मैं एक बात क्लियर कर दूं जो मुझे अगली सुबह पता चली. हुआ यूं था की मेरे बेटे और बहू ने भी चुदाई का प्रोग्राम बनाया था और छत पर इसी कमरे में मिलने का बनाया था. लेकिन मेरे साहबजादे शादी में आये मेहमानों के साथ शाम से ही मेरे पड़ोसी मिश्रा जी के घर बियर व्हिस्की वगैरह पीने पिलाने की पार्टी करने लगे और रात भर घर से बाहर रहे, इधर बहूरानी
मुझे अपना पति समझ के ये सब कर रही थी)

मेरे मन में तो आया कि बहूरानी को डांट दूं और कमरे से बाहर निकाल दूं. लेकिन अगले ही पल ये ख्याल आया कि अगर मैंने कुछ कहा तो वो मेरी आवाज से मुझे पहचान लेगी फिर लज्जावश वो जिंदगी भर मेरे सामने नहीं आ पाएगी या कोई आत्मघाती कदम उठा ले जिसका मुझे जीवन भर पछतावा रहे… नहीं… चुप रहना ही उचित है.
यही सोच कर मैं चुपचाप पड़ा रहा और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करता रहा कि वे कोई चमत्कार करें और मुझे इस पापकर्म में लिप्त होने से बचा लें.

एक बात और… मैंने अपने जीवन में अभी तक सिर्फ अपनी धर्मपत्नी रानी से ही सम्भोग किया था. न मैंने अपने विवाह के पूर्व किसी से सम्बन्ध बनाये न विवाह के बाद और आज इतने सालों बाद मेरी पुत्रवधू अनजाने में ही सही मेरे साथ सम्भोग करने को लालायित थी. पता नहीं मेरे किस जन्म के कुकर्मों का फल इस पाप कर्म के रूप में उदय हो रहा था.

बहूरानी के कामुक उपक्रम जारी थे. कभी मेरा लंड चूसती कभी अपने स्तन मेरी छाती से रगड़ती, मेरे लंड पर अपनी चूत घिसती या लंड चूसने लग जाती. मेरा दिमाग सुन्न होता जा रहा था मैं किसी तरह खुद पर कंट्रोल किये था पर मेरे लंड को रिश्तों नातों की क्या परवाह वह तो नयी चूत के सान्निध्य से और भी फूल के कुप्पा हो रहा था.

लंड तो लंड ही होता है उसके पास सोचने समझने के लिए बुद्धि विवेक कहाँ होता है; लंड को तो किसी औरत के जिस्म की आंच महसूस हो तो वो तुरन्त ही लड़ने भिड़ने को, दंगा करने को तैयार हो जाता है; उसे तो नर मादा के बीच बनने वाले उस एक रिश्ते को ही निभाना आता है.

बहूरानी की काम चेष्टाएं मेरे मन बुद्धि पर हावी होती जा रहीं थीं. फिर अचानक मेरे लंड ने जैसे विद्रोह कर दिया और मेरे बदन ने रिफ्लेक्स एक्शन किया और अनचाहे ही मेरे जिस्म में हरकत हुई और मैंने बहूरानी के जिस्म को अपने आगोश में भर लिया. मेरा तन मन अब मेरे बस में नहीं रह गया था. जिस काम वासना ने अच्छे अच्छे ऋषियों मुनियों की जीवन भर की तपस्या एक क्षण में भंग कर डाली थी तो मैं साधारण मनुष्य कब तक लड़ता इससे. जीत तो कामदेव की ही होनी थी.

अतः बहूरानी को अपनी आगोश में लेकर उनकी दोनों चूचियाँ अपनी मुट्ठी में भर के उस नवयौवना के होंठों का रस चूसने लगा. नर और नारी के जिस्मों का अनैतिक सम्बन्ध बन रहा था जो मेरे वश में कतई नहीं था. मेरे भीतर का मर्द बहूरानी की कामुक चेष्टाओं से पूर्ण उत्तेजित हो चुका था. मेरी कनपटियाँ वासना से तप रहीं थीं लंड बहुत देर से खड़ा था जिससे मेरे पेट की निचले हिस्से में
हल्का हल्का दर्द भी होने लगा था.

मेरी अंतरात्मा की क्षीण सी धिक्कार मेरी बुद्धि मेरे विवेक को जगाने की अन्तिम कोशिश कर रही थी लेकिन मैंने कामपाश के वशीभूत होकर बहूरानी की चूत को सहलाया और अंधेरे में उनकी चूत का द्वार उँगलियों से तलाशा और अपना फनफनाता लंड अपनी कुलवधू, अपने घर की लाज की चूत के छेद से सटाया और सुपाड़ा ताकत से अन्दर धकेल दिया.

छोटे टमाटर के आकार जैसा मेरा टोपा बहूरानी की चूत में जा के फंस गया. बहूरानी का जिस्म आनंद और दर्द से थरथराया और उन्होंने अपने घुटने ऊपर की तरफ करके जांघें अच्छे से खोल दीं जिससे उनकी चूत खुल के मेरे लंड के निशाने पर आ गयी.

और मैंने अपने दांत भींच कर कमर को धीमे से पीछे ले जा के लंड का भरपूर वार अदिति बहूरानी की चूत पर कर दिया. मेरा सुपाड़ा उनकी गीली चूत की मांसपेशियों के कस बल तोड़ता हुआ गहराई तक जा के धंस गया.

बहूरानी के मुंह से घुटी घुटी सी चीख और दर्द की कराहें निकलने लगीं- मर गयी रे, फट गयी मेरी तो… मार डाला आपने आज तो” बहूरानी ने आर्तनाद किया और मुझे परे धकेलने का प्रयास किया.
“उफ्फ, राजा आज आपका हथियार पहले से दुगना मोटा और लम्बा कैसे हो गया. मेरी पिंकी मे समा ही नहीं रहा पूरा” वो दर्द भरी आवाज में बोलीं.

लेकिन मैं क्या जवाब देता. मैं तो जल्दी से जल्दी झड़ जाने की धुन में धकापेल चुदाई करने लगा. जल्दी ही बहूरानी की चूत ने मेरा लंड एडजस्ट कर लिया और वो सटासट अन्दर बाहर होने लगा. उधर बहूरानी भी वासना के ज्वार में बहने लगीं और अपनी कमर उठा उठा के लंड लीलने लगीं. कभी मुझसे कस के लिपट के अपनी टांगें मेरी कमर में लपेट देतीं और और झड़ने लगतीं कभी उनकी चूत मेरे लंड से संघर्ष करने लग जाती. ऐसे कई बार बहूरानी ने चरम सुख प्राप्त किया.

पता नहीं कितनी देर तक मैं यूं ही बहूरानी की बुर फाड़ता रहा और फिर उनकी चूत में ही झड़ गया और अपने वीर्य से उसे लबालब भर दिया. मेरे लंड के झड़ते ही उनकी चूत सिकुड़ गयी और लंड बाहर निकल गया. मैंने जल्दी से अपने कपड़े पहने और करवट बदल के सोने की कोशिश करने लगा.

अगली सुबह मैं बड़ी जल्दी उठ के नीचे चला गया. बहूरानी ने कपड़े पहन लिए थे और वो अभी गहरी नींद में सो रही थी.

अगली सुबह बहूरानी के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं और वो बहुत घबराई हुई लग रहीं थीं, स्वाभाविक भी था. कोई भी स्त्री अंधेरे में भी किसी से चुदवा ले तो वो अपने पति और पर पुरुष में फर्क तो महसूस कर ही सकती है. यही बहूरानी के साथ हुआ; मुझसे चुदने के बाद उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही चुका था कि वो अपनी वासना के भंवर में कामातुरा हो कर किसी और का ही
लंड झेल गयी है अपनी चूत में.
अब उसे निश्चित ही इस बात की चिंता हो रही होगी कि चोदने वाला तो उसे पहचान गया कि वो इस घर की बहूरानी अदिति हैं पर उसे कौन चोद रहा था यह उसे अभी तक नहीं पता. अब शादी ब्याह वाले घर में कई सारे पुरुष होते हैं पता नहीं कौन पिछली रात उनका शील भंग कर गया होगा… यही चिंता उन्हें खाए जा रही थी.

उनकी चिंता कैसे दूर हुई और फिर क्या क्या हुआ ये सब बातें मैंने बड़े ही विस्तार से अपनी पूर्व की कहानियों में लिखीं हैं उन सब बातों को यहाँ दोहराना उचित नहीं है. जिन पाठकों ने पहले की कहानियाँ नहीं पढ़ी हैं वे पढ़ कर आनन्द लें.

तो मित्रो, ये थी मेरे और मेरी बहूरानी के बीच बने अनैतिक सेक्स संबंधों की संक्षेप गाथा जिसे मैंने पहले की कहानियों में विस्तार से लिखा है.

अब कहानी के अगले भाग में कहानी को वापस उसी मुकाम पर ले चलेंगे.
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