विधवा आंटी की चुत चुदाई

कुछ आगे जाते ही हमने बातें शुरू की. मैंने उन्हें अपने बारे में बताया और उनसे उनके बारे में पूछा. वो चिपक कर बैठी थीं तो उनके बड़े-बड़े चूचे मेरे पीठ पर रगड़ रहे थे. मुझे कुछ कुछ होने लगा था.
ना चाहते हुए भी मेरे मुँह से निकल गया- आप मुझसे यूं चिपक कर बैठी हो तो मुझे कुछ-कुछ हो रहा है.
आंटी ने पूछा- किधर क्या हो रहा है?
मैंने कहा- नीचे कुछ हो रहा है.
वो खिलखिला दी.

बस इतनी सी बातें हुई कि उनका उतरने का स्टॉप आ गया. मैंने उन्हें अपना मोबाइल नंबर दे दिया. वो मुस्कुरा कर धन्यवाद देते हुए चली गई और जाते-जाते उन्होंने मुझे फोन करने का भी बोला. बस मुझे अब उनके फ़ोन आने का इंतजार था.

रात को मैं खाना खाने के बाद छत पर टहल रहा था कि एक अंजान नंबर से मिस कॉल आई. मैंने उस नंबर पे कॉल किया तो वही आंटी बोल रही थीं.

हम दोनों ने कुछ बातें की और अगले दिन मिलने का वादा किया. दूसरे दिन शाम को उनकी कॉल आई तो मैंने कहा कि रात को दस बजे उसी जगह मिलेंगे.. जहाँ कल मैंने उन्हें ड्रॉप किया था.

रात को बताए समय पर उनसे मिलने निकला, वो वहीं पर खड़ी मिलीं. मैं उन्हें अपनी बाइक पर बिठा कर चल पड़ा. कहाँ जाना था, वो कुछ तय नहीं था. बस हम दोनों यूं ही चलते जा रहे थे.

चलते-चलते हम रिंग रोड पर आ गए. वहाँ एक जगह अंधेरा था और सड़क सुनसान थी. बाइक रोक कर हम दोनों वहीं पर बैठ गए. कुछ बातें की और मैंने उनका हाथ अपने हाथ में लिया और सहलाने लगा.

उस वक्त रोड पर कोई दिखाई नहीं दे रहा था. उन्होंने मेरी तरफ बड़े प्यार से देखा तो मैंने धीरे से आगे बढ़ कर उनके तपते होंठों पर अपने होंठ रख दिए. उन्होंने कोई ऐतराज नहीं किया. करीब दस मिनट तक हमने किस किया.

आहह क्या हसीन अहसास था. मैंने धीरे-धीरे से आंटी के चूचे दबाने शुरू किए. वो धीरे-धीरे गर्म होती जा रही थीं. फिर मैंने उनके ब्लाउज के बटन खोलने शुरू किए मगर उन्होंने मना किया. चूंकि हम सुनसान रोड पर थे तो किसी के आ जाने का डर था.

अब मैं वैसे ही उनके मम्मों को दबाने लगा. वो अपने आपे से बाहर होती जा रही थीं. उन्होंने मेरे लंड को पेंट के ऊपर से ही सहलाना शुरू किया. मैं उनके मम्मों को दबा रहा था और वो मेरा लंड सहला रही थीं. मुझे लगा मेरा लंड यूँ ही झड़ जाएगा तो मैंने अपनी पैंट की ज़िप खोल के अपना लंड बाहर निकाल दिया. अब वो आराम से मेरा लंड सहला रही थी.

मैंने उन्हें लंड चूसने को बोला तो वो बाइक पर से नीचे उतरीं और झुक कर मेरा लंड लॉलीपॉप की तरह चूसने लगीं. कुछ ही पलों की चुसाई में मेरे लंड से माल निकलने वाला था तो मैंने उनसे पूछा कि क्या वो मेरा मुँह में ही लेंगी, तो उन्होंने इशारा किया कि अन्दर ही आने दो.

इतने में मैं झड़ गया, उन्होंने बड़े चाव से मेरा माल पी लिया और लंड को चूस-चूस कर साफ कर दिया.

इसके बाद उन्होंने कहा- तुम्हारा तो हो गया मगर मेरा क्या??
मुझे उनकी बात सुन कर अच्छा नहीं लगा, मैंने अपनी तसल्ली तो कर ली, अब वो जगह सही नहीं थी कि मैं उन्हें वहाँ पर चोद सकूँ तो मैंने उनकी साड़ी को ऊपर करके अपना हाथ अन्दर डाला और आंटी की चूत को सहलाने लगा. उनका दाना अंगूर के जितना बड़ा हो गया था. कुछ देर सहलाने से उनका भी पानी निकल गया. थोड़ी देर बाद हम लोग वहाँ से निकल गए.

उस दिन के बाद हम रोज़ ही फ़ोन पर बातें करने लगे और अगली बार कहाँ मिला जाए, ये प्लान बनाने लगे.

चार दिन बाद हमने फिर से मिलकर सेक्स करने का प्लान बनाया. इस बार मैं उन्हें नर्मदा केनाल के रास्ते पर ले गया, वहाँ कोई भी आता-जाता नहीं था. वो एक विधवा औरत थीं तो उन्हें घर पर कोई पूछने वाला भी नहीं था. वो मन्दिर में भजन-कीर्तन की कह कर निकल जाती थीं और उनके वापस घर आने के समय की कोई पाबंदी नहीं थी. वो अपने दो बेटों के साथ ही रहती थीं, ये उन्होंने मुझे बाद में बताया था.

हम लोग नर्मदा केनाल के पास बाइक रोक कर बैठ गए. चाँदनी रात में पानी के किनारे ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी. रात के करीब दस बजे के आस-पास वहाँ एकदम सन्नाटा था.

हम लोग एक-दूसरे को किस करने लगे, वो धीरे-धीरे मेरे लंड को सहलाने लगीं और मैं उसके मम्मों को टटोलने में लग गया.
काफ़ी देर बाद उन्होंने कहा- अब बर्दाश्त नहीं हो रहा.. अब डाल भी दो.

मैंने उन्हें वहीं पर बाइक पर हाथों के सहारे घोड़ी बनाया और उनकी पैंटी आधी उतार दी और पीछे से अपना लंड आंटी की चूत की गहराइयों में डाल दिया. वो थोड़ी सी कसमसाईं क्योंकि बहुत दिनों बाद उनकी चूत को लंड नसीब हुआ था.

धीरे-धीरे से मैं अपने लंड को उनकी चूत के अन्दर-बाहर कर रहा था और वो भी अपना पिछवाड़ा हिला-हिला कर मेरा साथ दे रही थीं.
कुछ देर यूँ ही चोदते हुए उन्होंने कहा- अब मैं तुम पर सवारी करना चाहती हूँ.
मैंने ओके बोला और लंड निकाल लिया.

फिर उन्होंने वहीं ज़मीन पर अपना दुपट्टा बिछा दिया और मुझे लेटने को बोला. मैं दुपट्टे पर लेट गया और वो अपनी पैंटी उतार कर मेरे ऊपर आ गईं. उन्होंने मेरे लंड को अपने हाथों से पकड़ कर अपनी चुत पर सैट किया और उस पर बैठ गई.

उनकी चूत पहले से ही पनियाई हुई थी तो मेरा लंड सरसराता हुआ आंटी की चूत में चला गया. अब वो ऊपर से जोर-जोर से धक्के लगाते हुए कूद रही थीं और मैं भी नीचे से उछल-उछल कर उनकी ताल से ताल मिला रहा था. करीब दस मिनट तक चुदाई के बाद वो एक बार फिर झड़ गईं.

अब वो थक चुकी थीं, उनकी चूत से उनका पानी बहता हुआ मेरी जाँघों पर आ गया. उन्होंने मुझे ऊपर आने को कहा.

वो अपने बिछाए दुपट्टे पर अपनी दोनों टांगें फैला कर लेट गईं. मैं उनकी टांगों के बीच में आकर अपना लंड उनकी चूत पर रगड़ने लगा. फिर धीरे से लंड को उनकी चूत की जड़ में उतार दिया. मैं पहले धीरे-धीरे और फिर जोरों से धक्के लगाने लगा. कुछ मिनट की चुदाई के दौरान वो एक बार और झड़ गईं.

अब मैं भी अपनी चुदाई के अंतिम चरण में था और एक बड़े से झटके के साथ मेरे वीर्य का फव्वारा भी चुत में छूट गया. उनकी चूत मेरे वीर्य से लबालब भर गई.

हम लोग कुछ देर यू ही एक-दूसरे से चिपक कर लेट गए. फिर उठ कर हम दोनों ने अपने कपड़े ठीक किए और अपने घर की ओर निकल गए.

उस आंटी को मैंने और भी कई बार चोदा.

दोस्तो तो यह थी मेरी सत्य घटना. आशा है कि आपको मेरी आंटी सेक्स स्टोरी पसंद आई होगी. कृपया अपने सुझाव ज़रूर भेजें.
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