वासना के पंख-3

कुछ ही दिन में प्रमोद को भी लगने लगा कि वो अब मोहन के साथ उतना समय नहीं गुज़ार पा रहा था और जो मस्ती वो पहले किया करते थे वो काफी कम हो गई थी। मोहन को भी अपनी पत्नी को समय देना ज़रूरी था और फिर एक विषम-लैंगिक पुरुष को तो स्त्री के साथ ही सम्भोग करने का मन करेगा। प्रमोद के साथ तो ये सब इसलिए शुरू हुआ था कि कोई और चारा नहीं था और अब केवल दोस्ती निभाने के लिए चल रहा था।

प्रमोद ने भी अपने पिता को शादी के लिए इशारा किया कि हमारे घर में भी बहू होती तो काम आसान हो जाता। उनको भी बात सही लगी तो उन्होंने अपनी बिरादरी की एक पढ़ी-लिखी सुन्दर लड़की ढूँढ निकाली और शादी पक्की कर दी। लड़की का नाम शारदा था। पास के छोटे शहर में शारदा के पिता की रेडियो और घड़ी की दूकान थी। शारदा की माँ बचपन में ही गुज़र गईं थीं और बाप-बेटी अकेले वहीं शहर में रहते थे।

बहरहाल शादी हो गई और सुहागरात की बारी आई। प्रमोद के घर में कोई महिला नहीं थी इसलिए शादी के बाद रिश्तेदारों में भी कोई महिला रुकी नहीं। आखिर मोहन और संध्या ने ही मिल कर सुहागरात के लिए कमरा सजाया और संध्या ने शारदा को उसके बिस्तर पर बैठा कर एक सहेली की तरह समझा कर बाहर आ गई।

संध्या- अरे, अब आपस में चिपकना बंद करो। अब तो देवर जी को तो सुन्दर सी दुल्हन मिल गई है। जाओ देवर जी अपनी गिफ्ट खोल के देखो कैसी मिली है?
प्रमोद- आपने तो देख ली है ना आप ही बता दो कैसी है?
संध्या- बाहर से तो बहुत अच्छी है। अब अन्दर से तो आप ही खोल के देखोगे ना!
संध्या ने चुटकी लेते हुए कहा और खिलखिला के हँसते हुए अपने घर की तरफ चली गई।

मोहन- चल भाई जा, मुझे तो पता है कि तू आज पूरी चुदाई नहीं करेगा। तेरी सलाह पे तो मैंने 15 दिन लगा दिए पूरा लंड घुसाने में, तू पता नहीं कितने दिन लगाएगा। मौका मिले तो पूछ लेना। भाभी भी संध्या जैसी बिंदास हुई तो मज़े करेंगे साथ में।
प्रमोद- देखते हैं क्या लिखा है किस्मत में। संध्या भाभी सही कह रहीं थीं। गिफ्ट खोल के देखेंगे तभी पता लगेगा।

इतना कह कर प्रमोद ने मोहन से विदा ली और अपनी सुहागरात के सपने सजाए अपने कमरे की ओर चला गया। सुहागरात मनी और ठीक ही मनी लेकिन उसमें ऐसा कुछ हुआ नहीं जिसको प्रमोद उतने ही जोश से सुना पाता जितने जोश से मोहन ने उसे अपनी सुहागरात की कहानी सुनाई थी।

शारदा के ऊपर काम उम्र में ही ज़िम्मेदारियों का बोझ आ गया था और शहर में जीवन कुछ ऐसा होता है होता है कि बाहर के लोगों से मेलजोल कम ही हो पाता है उस पर शारदा के पिता को डर था कि कहीं बिन माँ की बेटी गलत रास्ते पर चली गई तो जीवन बरबाद हो जाएगा इसलिए हमेशा उसे ऐसी शिक्षा दी कि कभी स्कूल-कॉलेज की सहेलियों के साथ भी सेक्स के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं कर सकी।

एक तरह से उसके मन में सेक्स को लेकर एक डर भर गया था। मानो सेक्स करने से कुछ तो बुरा हो जाएगा। इतना तो उसे पता था कि शादी के बाद पति के साथ ये सब सामान्य जीवन का हिस्सा होता है लेकिन फिर भी सेक्स को लेकर उत्साह तो दूर की बात है, वो तो कामक्रीड़ा को लेकर सहज भी नहीं हो पा रही थी।

प्रमोद भी सौम्य पुरुष था और उस पर किसी तरह का जोर डालना नहीं चाहता था।

इसी तरह कुछ महीने बीत गए और अब कहीं जा कर प्रमोद ठीक तरह से शारदा को चोद पाता था। शारदा को भी मज़ा आने लगा था लेकिन उसके लिए अभी भी चुदाई एक बहुत ही गंभीर काम था जिसका वो आनंद तो लेती थी लेकिन इतनी स्वच्छंदता के साथ नहीं जिसमें कोई होश खो कर बस उड़ने सा लगता है। उसके हाव-भाव से ही प्रमोद कभी ऐसा नहीं लगा कि वो कभी मोहन और प्रमोद की दोस्ती में उस हद तक शामिल हो पाएगी जिसमे शर्म-लिहाज़ की सीमाएं बेमानी हो जाती हैं।

जीवन ठीक ठाक चल ही रहा था कि पता चला, शारदा के पापा बीमार रहने लगे थे। तय हुआ कि कुछ दिन के लिए प्रमोद और शारदा शहर जा कर रहेंगे। शारदा अपने पिता की सेवा करेगी और प्रमोद दुकान का काम सम्हाल लेगा। कुछ दिन कुछ महीनों में बदल गए। शारदा के पापा की तबीयत तो ठीक नहीं हुई लेकिन प्रमोद को शहर की हवा रास आ गई। पढ़े लिखे व्यक्ति को वैसे भी खेती-बाड़ी में मज़ा कम ही आता है। एक साल के अन्दर शारदा के पिता का देहांत हो गया।

लेकिन तब तक प्रमोद ने उस रेडियो घड़ी की दूकान को काफी बढ़ा लिया था। अब वो इलेक्ट्रोनिक्स के और भी सामान बेचने लगा था। उसने अपने पिता को भी शहर आने का निमंत्रण दिया लेकिन उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि उनको गाँव का वातावरण ही पसंद है। सच तो यह था कि उनका चक्कर अभी भी मोहन की माँ के साथ बदस्तूर चल रहा था। मोहन दोनों परिवारों की खेती सम्हाल ही रहा था और संध्या ने भी अच्छे से दोनों घरों को सम्हाल लिया था।

खैर, जीवन में एकरसता आने लगी थी, इसी बीच संध्या गर्भवती हो गई। बात ख़ुशी की थी लेकिन कुछ ही दिन में मोहन को समझ आ गया कि अब उसका कामजीवन उतना रसीला नहीं रहेगा लेकिन फिर भी संध्या इतनी चपल थी कि मोहन को किसी ना किसी तरह खुश कर ही देती थी। आखिर जब मामला ज्यादा नाज़ुक हुआ तो संध्या ने मोहन को उसके पुराने दिनों के बारे में याद दिलाया। संध्या अब मोहन के साथ बहुत खुल कर बात करने लगी थी।

संध्या- अब जब तक मैं कुछ करने लायक नहीं बची हूँ तो अपने पुराने दोस्त को क्यों नहीं बुला लेते; कब तक ऐसे तरसते रहोगे। मुझे आपको ऐसे देख कर अच्छा नहीं लगता।
मोहन- बात तो तुम सही कह रही हो लेकिन अब उसको ऐसे बुलाऊंगा तो बड़ा अजीब लगेगा कि मतलब पड़ा तो बुला लिया।
संध्या- अरे ऐसे कैसे? वो तो आपका इतना लंगोटिया यार था कि आप उससे मुझे भी चुदवाने को तैयार हो गए थे। अब क्या वो अपने दोस्त के लिए इतना भी नहीं कर सकता।

मोहन- चुदवाने को तैयार हुआ था, चुदवाया तो नहीं था ना?
संध्या- हाँ तो चुदवा भी देना लेकिन अभी मुझसे नहीं देखा जा रहा कि आप ऐसे मुरझाए हुए फिरते रहो।
मोहन- अब यार अपन तो हैं ही चोदू लोग अपने को तो कोई फर्क नहीं पड़ता अगर दोस्ती यारी में एक दूसरे की बीवी चोद लें तो, लेकिन वो भाई भी बीवी की मर्ज़ी बिना कुछ करने को मना करता है और उसकी बीवी सती सावित्री है तो वो तो मानेगी नहीं।

संध्या- ठीक है उसकी बीवी नहीं मान रही तो कोई बात नहीं मैं हाँ कह रही हूँ ना… आपको ना कोई एहसान लेने की ज़रूरत है ना को स्वार्थी महसूस करने की। बिंदास मस्ती करो अपने दोस्त के साथ। जब मैं चुदवाने लायक हो जाऊँगी तो मैं भी आप लोगों की मस्ती में शामिल हो जाऊँगी। फिर तो कोई बुरा नहीं लगेगा ना आपको?
मोहन- हाँ यार, ये तो तूने सही कही। मैं हमेशा उसी के साथ करता था सब अगर तू भी साथ रहेगी तो मज़ा ही आ जाएगा। तू कितना प्यार करती है ना मुझसे।

मोहन ने प्रमोद को गाँव बुलाया। प्रमोद, छुट्टी वाले दिन शारदा को ले कर पहुँच गया। दिन भर तो घर में सबके साथ बातचीत में गुज़र गया लेकिन रात को मोहन और प्रमोद खेत पर जा कर सोने के बहाने निकल गए। सच तो ये था कि दोनों ने खेत पर प्राइवेट में दारू पार्टी करने का प्लान बनाया था। दारू के बाद एक दूसरे का लंड चूसने का कार्यक्रम तो ज़रूर होना ही था।

रात को शारदा, संध्या के साथ ही सोई। संध्या बहुत तेज़ दिमाग थी, तो उसने शारदा के मन की टोह लेने के लिए उससे बात करना शुरू किया। वो ना केवल ये पता करना चाहती थी कि शारदा में कामवासना कितनी है, बल्कि उसे सेक्स की ओर आकर्षित भी करना चाहती थी।

संध्या- तुमको पता है, ये लोग खेत पर क्यों गए है?
शारदा- सोने के लिए। … नहीं?
संध्या- सोएंगे… सोएंगे… लेकिन सोने से पहले और भी बहुत कुछ करेंगे।
शारदा- क्या करेंगे? और आपको कैसे पता ये सब?

संध्या- मुझे इसलिए पता है कि मैंने ही मोहन को कहा था। और रही बात ये कि क्या करेंगे तो हुआ ये कि जब से मैं पेट से हुई हूँ तब से हमारी मस्ती ज़रा कम हो गई थी। मोहन ने बताया था कि ये दोनों दोस्त बचपन में ये सब मस्ती आपस में किया करते थे तो मैंने कहा एक बार पुरानी यादें ही ताज़ा कर लो।
शारदा- क्या बात कर रही हो दीदी ऐसा भी कोई होता है क्या? और आपके इन्होंने आपको बताया लेकिन मेरे यहाँ तो इन्होंने ऐसा कुछ नहीं बताया।

संध्या- अब तुम थोड़ी रिज़र्व टाइप की हो ना इसलिए बताने में झिझक रहे होंगे।
शारदा- नहीं आप झूठ बोल रही हो। मेरे ये ऐसे नहीं हैं।
संध्या- ये तो सही कही तुमने प्रमोद भाईसाहब हैं तो बड़े सीधे सच्चे आदमी लेकिन मैं झूठ नहीं बोल रही।
शारदा- सीधे सच्चे हैं ये भी बोल रही हो और ऐसे गंदे काम करने गए हैं ये भी बोल रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है।

संध्या- शारदा… शारदा… ! कितनी भोली है री तू। देख, तू जितना खुल के बात करेगी अपने पति से, वो भी उतना खुल के बताएगा ना तुझे सब। मैंने तो पहली रात को ही सब बातें जान ली थीं।

फिर संध्या ने शारदा को मोहन-प्रमोद की सारी कहानी सुना डाली जो मोहन ने उसे बताई थी।

शारदा- सच कहूँ तो मेरी कभी इतनी करीब की कोई सहेली रही ही नहीं। माँ के नहीं रहने के बाद कभी इतना समय ही नहीं मिला कि इन सब बातों में बारे में सोच सकूँ। लेकिन अब मैं कोशिश करुँगी कि इन के साथ खुल कर ये सब बातें कर सकूँ।
संध्या- मुझे ही अपनी करीब की सहेली मान लो।
शारदा- वो तो मान ही लिया है तभी तो आपसे इतनी सब बातें कर लीं।

संध्या- ऐसा है तो हम भी वो करें जो ये लोग वहां खेत पर करने गए हैं।
शारदा- नहीं दीदी, मेरी इतनी हिम्मत नहीं है। आपने किया है कभी।
संध्या- नहीं किया लेकिन सोच रही थी कि तुम हाँ कह देतीं तो एक बार ये भी करके देख लेती।

फिर थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई। थोड़ी देर बाद जब शारदा ना अपना सर घुमा कर संध्या की ओर देखा तो पाया कि संध्या बड़ी ही कामुक अदा और नशीली आँखों से एक टक उसी को देख रही थी। कुछ पलों तक वो भी उसकी आँखों में आँखें डाले सम्मोहित सी देखती रही अचानक संध्या ने अपने होंठ शारदा के होंठों पर रख दिए। शारदा की आँखें अपने आप बंद हो गईं और उसने अपने आप को उस कोमल चुम्बन की लहरों पर हिचकोले खाते हुआ पाया।

शारदा भी अब तक कम से कम चुम्बन की कला में तो पारंगत हो ही चुकी थी। वो वैसे ही संध्या का साथ देने लगी जैसे प्रमोद का देती थी। लेकिन ये अनुभव कुछ नया ही था। संध्या के पतले मुलायम होंठों के स्पर्श से मंत्रमुग्ध शारदा को पता ही नहीं चला कि कब संध्या ने उसके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए। संध्या ने ब्रा को नीचे सरकाया और शारदा के एक स्तन का चूचुक चूसने लगी। शारदा कभी प्रमोद को कहने की हिम्मत नहीं कर पाई थी कि वो किस तरह से अपने स्तन चुसवाना चाहती है लेकिन संध्या को तो जैसे पहले से ही पता था।

शारदा आनंद के सागर में गोते लगा रही थी कि उसका ध्यान गया कि संध्या भी एक हाथ से अपना ब्लाउज खोलने की कोशिश कर रही थी। शारदा ने भी उसकी मदद की और जल्दी ही दोनों स्त्रियाँ अर्धनग्न अवस्था में एक दूसरी के स्तनों को चूस रही थीं। संध्या शारदा के ऊपर झुक कर उसका दाहिना स्तन चूस रही थी और बायाँ अपने एक हाथ से सहला रही थी। उधर उसका दाहिना स्तन शारदा के चेहरे पर झूल रहा था जिसे शारदा किसी आम की तरह पकड़ का ऐसे चूस रही थी जैसे बछड़ा गाय का दूध पीता है।

इसी बीच वासना से सराबोर संध्या ने अपना बायाँ हाथ शारदा के साए के अन्दर सरका दिया और उसकी चूत का दाना खोजने लगी। लेकिन जैसे ही उसकी उंगली शारदा की गीली चूत के दाने को छू पाई, शारदा उठ कर बैठ गई।
शारदा- नहीं दीदी! ये सब सही नहीं है… हमको ये सब नहीं करना चाहिए।
इतना कह कर उसने जल्दी जल्दी अपनी ब्रा और ब्लाउज पहना और साड़ी ठीक करके दूसरी ओर करवट ले कर सो गई।

नींद तो दोनों को देर रात तक नहीं आई लेकिन फिर कोई बात भी नहीं हुई। अगली सुबह सब ऐसे रहा जैसे रात को कुछ हुआ ही नहीं। प्रमोद और शारदा नाश्ता करके वापस शहर चले गए।

आगे भी कई बार मोहन ने प्रमोद को बुलाया लेकिन फिर शारदा उसके साथ नहीं गई। प्रमोद की वजह से मोहन को अपने जीवन में काम-वासना की कोई कमी महसूस नहीं हो पाई। यूँ तो संध्या भी मोहन का लंड चूस कर झड़ा सकती थी और झड़ाती भी थी लेकिन अभी वो लोट-पोट होकर उत्तेजना वाली मस्ती करने की स्थिति में नहीं थी तो ये सब मोहन प्रमोद के साथ कर लेता था। यूं ही दिन बीत गए और संध्या ने एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया जिसका नाम आगे चल कर पंकज रखा गया।

पंकज के जन्म पर तो शारदा को प्रमोद के साथ गाँव जाना ही था और वैसे भी जिस कारण से तो उसके साथ जाने से कतराती थी वो अब था नहीं। संध्या अभी इस अवस्था में नहीं थी कि शारदा के साथ कोई शरारत कर सके। वैसे शारदा को संध्या पसंद थी। उसी की सलाह का नतीजा था कि पिछले कई दिनों से प्रमोद-शारदा के सम्बन्ध बहुत रंगीन हुए जा रहे थे। लेकिन शारदा के संस्कार उसे अपने पति के अलावा किसी और के साथ कामानंद की अनुभूति करने से रोकते थे और इसीलिए वो संध्या से ज्यादा नजदीकी रखने में झिझक रही थी।

जो भी हो, शारदा ने आते ही संध्या की मदद करना शुरू कर दिया ताकि वो आराम कर सके और अपने बच्चे का ध्यान रख सके। मोहन, प्रमोद और प्रमोद के बाबा खेती-बाड़ी की बातों में लगे रहे। रात को हमेशा की तरह मोहन और प्रमोद खेत पर दारू पार्टी और मस्ती करने चले गए। आज मोहन बहुत खुश था उसके घर में बेटा जो हुआ था, लेकिन नशे का थोडा सुरूर चढ़ने के बाद मोहन ने प्रमोद को एक और खुशखबरी सुनाई।

मोहन- यार! इतने दिन तूने मेरा बहुत साथ दिया। बहुत मज़े करे अपन ने यहाँ मिल के।
प्रमोद- दोस्त ही दोस्त के काम आता है यार।
मोहन- हम्म… लेकिन तू मेरा खास दोस्त है… तो तेरे लिए एक और खुशखबरी है।
प्रमोद- क्या?

मोहन- मैं संध्या के साथ मज़े नहीं कर पा रहा था तब उसी ने मुझे बोला था तुझे बुलाने को। वो ये भी बोली थी कि अगर तू मेरे साथ मस्ती करेगा तो वो भी टाइम आने पर हमारी मस्ती में साथ देगी।
प्रमोद- वो साथ तो दे ही रही है ना… पता होते हुए भी हमको यहाँ आने देती है। मेरी बीवी को भी वासना की ऐसी पट्टी पढ़ाई है कि कुछ महीनों से तो मेरी जिंदगी रंगीन हो गई है।
मोहन- अरे नहीं यार… तुझे चढ़ गई है… तू समझ नहीं रहा है।
प्रमोद- समझ रहा हूँ यार। पिछली बार शारदा एक रात भाभी के साथ रुकी थी और उन्होंने जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि जो औरत पहले ठीक से चुदवाती भी नहीं थी वो अब खुद ही मुझे चोद देती है।
मोहन- अरे यार मैं बोल रहा हूँ कि संध्या भी अब हम दोनों को एक साथ चोद देगी!
प्रमोद- क्या? हम दोनों को? मतलब…

मोहन- मतलब ये कि मेरी भाभी तैयार हो ना हो… तेरी भाभी तैयार है अपन दोनों से साथ में चुदवाने के लिए। तो अब अगली बार जब तू आएगा तो अपन साथ मिल उसके साथ मज़े करेंगे।
प्रमोद- ऐसा है तो यार, एक खुशखबरी मेरे पास भी है।
मोहन- क्या? बता भाई बता… आज तो दिन ही ख़ुशी का है।

प्रमोद- देख वो मेरी दूकान पर मैंने जो टीवी कूलर बेचना शुरू किया था ना तो टीवी कंपनी ने टारगेट दिया था। पूरा करने वाले डीलर को यूरोप में दो लोगों के लिए 5 दिन घुमाने का इनाम था। तो मैंने तो टारगेट से ज्यादा टीवी बेच डाले। तो अब जल्दी ही यूरोप जाने का प्रोग्राम है।
मोहन- मुबारक हो भाई। लेकिन, इसका मेरी वाली खुशखबरी से क्या वास्ता।

प्रमोद- वास्ता ये है कि मैंने अभी तुझे बताया ना कि भाभी की संगती में रह के शारदा ढंग से चुदाई करना सीख गई। इसलिए मुझे उम्मीद है कि वहां विदेशी लोगों का खुलापन देखेगी तो शायद वो भी हमारी मस्ती में शामिल होने को राजी हो जाए। मैंने सुना है वहां किसी किसी बीच पर नंगे घूमना आम बात है।
मोहन- ऐसा है क्या? फिर तो घुमा ला। तब तक संध्या की चूत भी थोड़ी टाइट हो जाएगी। फिर दोनों भाई मिल के साथ में भाभीचोद बनेंगे।
इस बात पर दोनों बहुत हँसे।

नशे का सुरूर और वासना अब सर चढ़ चुका था। दोनों जल्दी ही नंगे हो गए और एक दूसरे की बीवी को कैसे चोदेंगे ये बातें करते करते मस्ती करने लगे। ऐसे तो दोनों एक दूसरे की पत्नी के बारे इज्ज़त से ही बात करते थे लेकिन आज नशे में उनको शायद लग रहा था कि उनकी कल्पना सच हो ही जाएगी। आगे क्या होने वाला था ये तो समय को ही पता था।

दोस्तो, मेरी वासना भरी कहानी आपको कैसी लग रही है, बताने के लिए मुझे यहाँ मेल कर सकते हैं [email protected] आपके प्रोत्साहन से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है।