लागी लंड की लगन, मैं चुदी सभी के संग-40

डायनिंग टेबिल पर उसको सर को टिका दिया और अश्वनी को उसके ऊपर बैठने के लिये बोला गया, पहले अश्वनी ने मना किया फिर सभी के दबाव में आकर वो टोनी के पीठ पर बैठ गया।

टोनी अपनी जगह से हिल नहीं पा रहा था, टोनी अब चिल्लाने लगा- भोसड़ी वालो, मत मारो मेरी गांड, मैं गांडू नहीं हूँ।
सभी एक साथ बोल पड़े- अबे लौड़े के… हम भी गांडू नहीं है, पर मजा लेना है।
अभय सर बोले- अबे गांडू, जब मेरी गांड मार रहा था तो बड़े मजे ले रहा था।

अभय सर की बात सुनकर सब कुछ न कुछ बोलते जा रहे थे और टोनी की गांड में कोई चपत लगाता तो कोई उसकी गांड में उंगली करता तो कोई टोनी के अंडे को पकड़ कर दबा देता।

रितेश ने ट्यूब से क्रीम निकाली और उसकी गांड में लगाते हुए बोला- चल गुरू, हम भी लोग गांड मरवायेंगे।
कहकर उसकी गांड को क्रीम से भर दिया, फिर अपने लंड में अच्छे से क्रीम लगाई और टोनी की गांड को अपने सुपाड़े से सहलाने लगा और सहलाते-सहलाते एक झटके से गांड के अन्दर लंड को पेल दिया।

एक तेज चीख- उम्म्ह… अहह… हय… याह… मार डाला मादरचोदों ने! मेरी गांड के अन्दर लंड नहीं लोहे की राड डाल दिया है। इस राड को निकाल लो। रितेश मेरे भाई तुम मेरे पुराने दोस्त हो, यार अपना लंड निकाल लो, मेरी गांड बक्श दो।

लेकिन रितेश कहां मानने वाला था, उसने एक बार फिर लंड को झटके से निकाला और फिर दूसरे ही पल और तेजी के साथ पेल दिया। सभी मर्द और सभी औरते टोनी के इर्द गिर्द खड़े होकर तमाशा देख रहे थे।

इस बार रितेश का पूरा लंड टोनी के गांड के अन्दर था, और टोनी केवल चिल्ला ही पा रहा था। रितेश अब टोनी की गांड को चोदे जा रहा था और जब रितेश कन्फर्म हो गया तो उसने अश्वनी को आने का इशारा किया। अश्वनी टोनी के ऊपर चढ़ गया।
अब टोनी भी मजे ले ले कर अपनी गांड मरवा रहा था।

फिर बारी-बारी से सभी ने टोनी की गांड को जम कर चोदा। टोनी की भी हालत अभय सर की ही तरह हो गई थी, टोनी ही क्यूं, जिसकी भी गांड चुदी उन सभी की गांड अभय सर की गांड की तरह सूज चुकी थी। मर्दो की गांड चुदाई देखते देखते रात को ग्यारह बज गये थे। किसी मर्द में इतनी ताकत नहीं बची थी कि वो हम लोगों को चोद सकें।

हालांकि हम लोगों को भी किसी लंड की जरूरत नहीं थी क्योंकि उन सभी की चुदाई को देखकर उंगली करते करते हम सभी की चूत का पानी बाहर आ चुका था, तो सभी ने निर्णय लिया कि अब प्रोग्राम को रोक दिया जाये।

सभी खाना-खाकर अपनी-अपनी बीवी को लेकर सोने लगे।

मेरे पति की उंगली मेरी चूत के अंदर

रात को कोई खास बात नहीं हुई, बस आधी रात को नीद में मुझे एहसास हुआ कि मेरी चूत के अन्दर कुछ हलचल हो रही थी।
देखा तो रितेश के एक टांग मेरे ऊपर थी, उसकी उंगली मेरे चूत के अन्दर टहल रही थी और मेरे निप्पल उसके मुंह को आनन्द दे रहे थे।

मेरी नींद उचट चुकी थी, मैंने अपने चारों ओर देखा तो सिवाय मेरे और रितेश के अलावा सभी गहरी नींद में सो रहे थे।

मैं रितेश के सर को सहलाने लगी, रितेश तुरन्त उठा और मेरी छाती पर हौले से बैठ गया और अपने लंड को मेरे मुंह में पेल दिया। फिर थोड़ी देर बाद खुद ही 69 की अवस्था में हो गया, उसका लंड मेरे मुंह में था और मेरी चूत पर उसकी जीभ चल रही थी।

उसकी गांड हल्की सी लाल और सूजी हुई थी जो यह बता रही थी कि चार-चार लंड को उसकी गांड ने झेला है।

मैं उसके लंड को चुसते हुए जैसे ही उसकी गांड को सहलाने की कोशिश करने लगी, उसके मुंह से हल्की सी चीत्कार निकली।
मेरे लिये रितेश ने अपनी गांड चुदवा ली।

मैंने बहुत ही प्यार से अपनी जीभ उसके गांड में ट्च की। जिस तरह रितेश ने अपनी गांड हिलाई, मुझे लगा कि मेरी जीभ का अहसास उसे अपनी गांड में अच्छा लग रहा है तो मैं उसके लंड को चूसना छोड़कर उसकी गांड को चाटने लगी और रितेश को भी बड़ा आराम मिल रहा था।

थोड़ी देर तक वो मेरी चूत चाटता रहा और मैं उसकी गांड को चाटती रही।
मैं पानी छोड़ चुकी थी, रितेश ने मेरे रस को भी चाटकर साफ कर दिया, फिर वो मेरे ऊपर से हटकर मेरी बगल में लेट गया और मुझे इशारे से उसके लंड की सवारी करने के लिये बोला।

मैं उठी, उसके लंड पर बैठ गई और बिना कोई आवाज किये हुए उसके लंड पर उछलने लगी। मेरी चूची भी इधर उधर उछल रही थी और जिसको रितेश पकड़ रहा था और छोड़ रहा था।

फिर कुछ देर में मुझे अहसास हुआ की रितेश का जिस्म अकड़ रहा है और उसका वीर्य मेरी चूत को नहला रहा है।
फिर रितेश ढीला हो गया और कुछ देर बाद उसका लंड भी मुरझा कर मेरी चूत से बाहर आ चुका था। फिर हम दोनों चिपक कर सो गये।

दूसरे दिन की सुबह अन्तिम सुबह थी क्योंकि रविवार का दिन शुरू हो चुका था। हम सभी एक बार फिर तैयार हो चुके थे, हम सभी के बीच यह तय हुआ कि शाम छः बजे तक बारी-बारी से एक दूसरे से अदला बदली की जाये।
आज सभी मर्द एक बार फिर हम औरतों के कहने पर अपनी गांड मरवाने को तैयार हो गये थे।

शुरूआत मेरे से ही हुई, अश्वनी मेरे पास आया और मेरे हाथ को पकड़ कर चूमा और मेरी तरफ एक गुलाम की तरह उसने अपना सर झुका लिया और फिर मेरी दोनों टांगों को फैला कर मेरी चूत में अपनी जीभ लगा दी।

सहेली के पति का लंड मेरी चूत में

जैसे ही अश्वनी ने मेरी चूत पर अपनी जीभ लगाई मेरे दोनों टांगे खुद-ब-खुद उसके गर्दन के इर्द-गिर्द लिपट गई, अश्वनी ने भी मुझे थोड़ा सा अपनी ओर खींच लिया।
अब वो मेरी जांघ पर अपनी जीभ फिराता तो कभी मेरी चूत के ऊपर चाटता तो कभी मुझे उसकी जीभ मेरी चूत के अन्दर महसूस होती।

अश्वनी का एक हाथ मेरी चूची को जोर-जोर से भींच रहा था, मेरी आँखें बन्द थी और मैं केवल अश्वनी को ही महसूस कर रही थी, मुझे पता नहीं चल रहा था कि बाकी सभी लोग क्या कर रहे हैं, बस हा हो हा हो की आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़ रही थी।

तभी मुझे अहसास हुआ कि किसी का लंड मेरे होंठों को पुचकार रहा है, मैंने बन्द आँखों से ही उसके लंड को पकड़ा और महसूस करने की कोशिश करने लगी कि यह लंड किसका हो सकता है।

लंड का आकार जैसे ही मुझे समझ में आया, हल्की सी मुस्कुराहट के साथ मेरे होंठ खुले और मेरी जीभ बाहर निकली और लंड के अग्र भाग को टच कर गई।
लंड के रस की एक बूंद मेरी जीभ से टकराई और फिर मैंने आँखें खोल कर अभय सर को देखा।

मुझे देखते ही अभय सर बोले- अब मुझे तुमसे कोई दूर नहीं कर सकता। मेरा लंड तुम्हारी जीभ की तलाश में इधर आ गया।
मैंने बिना कुछ कहे अपनी आँखे बन्द की, अभय सर ने मेरे सिर पर अपना हाथ रखा और अपने लंड को मेरे मुंह की सैर कराने लगे।
नीचे अश्वनी मेरी चूत को सुख पहुंचा रहा था और ऊपर मैं अभय सर के लंड को सुख पहुंचा रही थी।
अभय सर थोड़ी ही देर में खलास हो गये और अपना पूरा माल मेरे मुंह के अन्दर छोड़ दिया।

फिर अभय सर मेरे होंठ को चूमने के लिये झुके तो मैंने तुरन्त ही उनके मुंह के अन्दर उनके वीर्य को वापस कर दिया।
अश्वनी ने भी मेरी चूत चाटना बन्द कर दिया और मुझे घोड़ी बनने के लिये कहा।

मैं खड़ी हुई और घोड़ी की पोजिशन में खड़ी हो गई, उसके बाद अश्वनी पीछे से ही मेरी चूत के साथ-साथ मेरी गांड को भी चोदना शुरू कर दिया।

अश्वनी का लंड मेरी चूत और गांड में बदल बदल कर चल रहा था जबकि उसके हाथ मेरे चूचों को मस्त कर रहे थे।
मेरी चुदाई खूब मस्त चल रही थी, मैं आँखें बन्द करके अपनी चुदाई के अहसास का मजा ले रही थी, मैं अपनी चूत के अन्दर झन्नाटेदार झटके को महसूस कर रही थी।

अश्वनी का हर शॉट मुझे एक अलग मजा दे रहा था, आह-ओह की आवाज के साथ अश्वनी मेरी चुदाई कर रहा था।
फिर वो कुर्सी पर बैठ गया और मुझे उसने अपने लंड के ऊपर बैठा लिया।
मैं झड़ चुकी थी, लेकिन मैं चाह रही थी कि उसका लंड मेरी चूत के अन्दर ही पड़ा रहे।

अश्वनी बारी-बारी मेरी चूचियों को चूसने लगा, वो बड़े ही कस कर मेरी चूची को चूस रहा था और मेरी पीठ में अपनी हथेली को गड़ा रहा था।
मैं भी अपने जिस्म को हरकत देते हुए उसके लंड को अपने अन्दर हिलाने डुलाने लगी।

करीब पांच मिनट बाद अश्वनी ने मुझे जल्दी से अपने ऊपर से उतारा, मैं समझ गई कि अश्वनी के झड़ने का टाईम आ गया, मैंने अपना मुंह उसके लंड के सामने खोल दिया।

कुछ सेकेन्ड अश्वनी ने अपने लंड को फेंटा और फिर एक सफेद लहराती हुई धार मेरे मुंह के अन्दर गिरने लगी।

जब उसका पूरा रस मेरे मुंह के अन्दर आ गया तो उसकी बची हुई बूंद को लेने के लिये मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और अश्वनी ने अपने लंड को मेरी जीभ से टच कर दिया।
मैंने उस रस की आखरी बूंद को भी चाट कर साफ कर दिया।

कहानी जारी रहेगी।
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