जब साजन ने खोली मोरी अंगिया-8

पहले तो निहारा उसने मुझे फिर मुस्कान होठों पर खेल गई

उंगली से ठुड्डी उठा मेरी, होंठों को मेरे सखी, चूम लिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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मेरे स्तन बारी बारी उसने वस्त्र सहित ही चूम लिए

अंगिया का आवरण दूर किया और चुम्बन से उन पर दबाय दिया

हर कोने में स्तनों को री सखी, हाथों से उभार कर चूम लिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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दबा-दबा के वक्षों को, उसने मुझको मदहोश किया

फिर चूम लिया और चाट लिया, फिर तरह-तरह से चूस लिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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अंगन से रगड़त थे अंगन को, सब अंगन पे जीभ फिरात रहे

सर्वांग मेरे बेहाल हुए, मुझे मोम की भांति पिघलाय दिया,

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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आगे चूमा पीछे चूमा, मोहे चूम-चूम निढाल किया

उभरे अंगों को साजन ने, दांतों के बीच दबाय लिया

मैं कैसे कहूँ तुझसे ऐ सखी, अंग-अंग पे निशानी छोड़ दिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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माथे को उसने चूम लिया, फिर आँखों को उसने चूमा

होंठों को लेकर होंठों में, सब रस होंठों का चूस लिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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चुम्बन की बारिश सुन री सखी, ऊपर से नीचे बढ़ती गई

मैं सिसकारी लेती ही गई, वह अमृत रस पीता ही गया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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अपना अंग लेकर वह री सखी, मेरे अंग के मध्य समाय गया

फिर स्पंदन का दौर चला, तन ‘मंथन योग’ में डूब गया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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स्पंदन क्रमशः तेज हुए, मैंने भी नितम्ब उठाय दिए

मैं लेती गई वह देता गया, अब सीत्कार उल्लास हुआ

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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खटिया की ‘चूँ-चूँ’ की धुन थी, और स्पंदन की थाप सखी

उसकी सांसों की हुन्कन ने, आनन्द-अगन का काम किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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अंग उसका सखी मेरे अंग में, अन्दर जाता बाहर आता

छूकर मेरे अन्तस्थल को, वह सखी और भी इतराता

मेरे अंग ने तो सरस होकर, सखी उसको और कठोर किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी मदहोशी बढ़ती गई

मैं सिसकारी के साथ साथ, उई आह ओह भी करती गई

अंगों के रसमय इस प्याले में, उत्तेजना ने अति उफान लिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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उसके नितम्ब यूँ उठे-गिरे, जैसे लौहार कोई चोट करे,

तपता लोहा मेरा अंग बना उसका था सख्त हथौड़े सा

उसके मुख से हुन्कन के स्वर, मैंने आह ओह सीत्कार किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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स्पंदन रत उसके नितम्बों पर, मैंने सखी उँगलियाँ फेर दईं

मैंने तो अपनी टांगों को सखी उसकी कमर में लपेट दईं

मैंने हाथों से देकर दबाव, नितम्बों को गतिमय और किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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हर स्पंदन से रस बनता, अंग के प्याले में गिर जाता

साजन के अंग से चिपुड़-चिपुड़, मेरे अंग को और भी मदमाता

साजन ने रसमय अंग लेकर, स्पंदन कई विशेष किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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पूरा का पूरा अंग उसका, सखी मेरे अंग के अन्दर था,

कमर के पार से हाथ लिए, नितम्बों को उसने पकड़ा था

अंग लम्बाई तक उठ नितम्बों ने, अंग उतना ही अन्दर ठेल दिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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अब इतनी क्रियाएँ एक साथ, मेरे तन में सखी होती थी

मुख में जिह्वा, होंठों में होंठ, अंगों का परस्पर परिचालन

साजन ने अपने हाथों से, स्तनों का मर्दन खूब किया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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मैं अब सब कुछ सखी भूल गई, मैंने कुछ भी न याद किया

अंग की गहराई में साजन ने, सुख तरल बना के घोल दिया

मेरे अंग में उसने परम सुख की कई-कई धाराएँ छोड़ दिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !

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मैं संतुष्ट हुई वह संतुष्ट हुआ, उसका तकिया मेरा वक्ष हुआ

गहरी सांसों के तूफानों ने, क्रमशः बयार का रूप लिया

उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !