मैं बुरी तरह घबरा गया और मुझ से ज्यादा श्वेता।
उसने झट से उठ कर अपनी सलवार बाँधी और किताबें उठा कर बाहर जाने लगी।
मैंने उसको पकड़ कर रोका और पिछले दरवाजे पर ले गया।
जैसे ही मम्मी ने अगले दरवाजे से प्रवेश किया मैंने श्वेता को पिछले दरवाजे से बाहर कर दिया।
मम्मी घर में आते ही सीधे रसोई में कीर्तन से लाया हुआ प्रसाद रखने चली गई और मुझे श्वेता को बाहर निकालने का मौका मिल गया।
श्वेता के घर से बाहर जाते ही मेरी साँस में साँस आई पर गुस्सा भी बहुत आ रहा था।
नजरों के सामने अब भी श्वेता की गुलाबी चूत घूम रही थी।
मन में हलचल मची हुई थी।
मैंने सीधे अपनी बाइक उठाई और अपने दोस्त के घर की तरफ चल दिया।
संजय मेरा खास दोस्त होता था उन दिनों।
संजय के घर पहुँचा तो वो घर पर नहीं था।
मेरा दिमाग और घूम गया।
तभी मुझे श्वेता नजर आई।
वो संजय के घर के पास ही के एक मकान के अंदर गई थी।
शायद उसने मुझे नहीं देखा था।
पाँच मिनट इंतज़ार करने के बाद वो घर से बाहर आई तो मैं बाइक लेकर उसके सामने चला गया।
मैं बाइक लेकर वापिस आया तो उसने मुझे रुकने का इशारा किया।
‘तुम यहाँ क्या कर रहे हो..?
मैंने जवाब देने की जगह उससे यही सवाल कर लिया।
उसने बताया कि यह उसके चाचा का घर है। आजकल चाचा एक महीने के लिए बाहर गए हुए हैं तो दादी और बुआ के साथ वो भी आजकल यहीं रह रही है एक महीने के लिए।
साथ ही उसने मुझे अंदर आने को कहा।
पहले तो हिम्मत नहीं हुई पर फिर सोचा कि जब लड़की खुद बुला रही है तो मुझे क्या दिक्कत है।
मैंने बाइक साइड में खड़ी की और श्वेता की पीछे पीछे घर के अंदर चला गया।
अंदर कोई नहीं था।
अंदर जाने के बाद श्वेता ने बताया कि उसकी दादी और बुआ उसकी मम्मी से मिलने उसके घर गए हैं।
मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई।
मैंने बिना देर किये श्वेता को बाहों में भर कर सोफे पर लेटा लिया और उसके होंठ चूसने लगा।
बिना देर किये मैंने श्वेता के और अपने कपड़े खोल लिए।
श्वेता की सलवार निकलने के बाद मैंने अपनी पैंट भी उतार दी।
श्वेता की कमीज को मैंने ऊपर उठाया हुआ था।
पहले मैंने श्वेता की चूचियाँ चूसी और फिर नाभि को चूमते हुए मैंने अपने होंठ श्वेता की चूत पर रख दिए।
श्वेता जो खुद भी मेरे घर में मिले अधूरे मज़े को पूरा करना चाहती थी, मुझ से लिपट गई।
मेरे सर को उसने अपनी जांघों में अपनी चूत पर दबा लिया था।
मैं भी जीभ निकाल कर उसकी चूत चाटने लगा।
कुंवारी चूत के रस को जीभ पर महसूस होते ही मेरे लण्ड में भी भरपूर जोश भर गया था।
मैं मग्न होकर श्वेता की चूत चाटने लगा था।
श्वेता भी सोफे पर आँखें बंद करके लेटी चूत चुसाई का मज़ा ले रही थी कि तभी किसी ने मेरे बाल पकड़ कर ऊपर खींचा।
ऊपर देखते ही मेरे होश उड़ गए।
एक पच्चीस-छब्बीस साल की थोड़ी मोटी… या यूँ कहो कि भरे से बदन की लड़की थी वो।
मैं घबरा गया था।
मैं छूट कर भागना चाहता था पर मेरी पैंट उसके हाथ में थी और मेरे बाल भी।
मेरे होंठ चूत पर से हटते ही श्वेता ने भी आँखे खोली।
उसको देखते ही वो चीख पड़ी- बुआ… आप?
यह श्वेता की बुआ थी।
घबराहट के मारे हम दोनों का बुरा हाल था।
एक ही दिन में यह दूसरा झटका था हम दोनों के लिए।
श्वेता की बुआ जिसका नाम सपना था, गुस्से में उबल रही थी।
श्वेता अपनी बुआ की पैरों में गिर गई और माफ़ी मांगने लगी पर सपना मान ही नहीं रही थी।
‘कमीनी… कौन है यह… मेरे पीछे से अपने यार बुला कर मज़े कर रही है… बहुत आग लगी है तो भैया को बोल देती हूँ तेरी शादी करने के लिए…’
‘बुआ माफ कर दो… दुबारा ऐसी गलती नहीं होगी…’
पर सपना का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था।
मैं छूट कर भागना चाहता था पर मेरे बाल सपना ने बुरी तरह से जकड़ कर पकड़ रखे थे।
पहली बार लंबे बाल रखने का मज़ा चख रहा था।
मुझे बुरा लगता था जब मम्मी कहती कि बाल छोटे करवा ले, पर आज मुझे मम्मी याद आ रही थी।
श्वेता रोये जा रही थी।
इस बीच सपना दो तीन थप्पड़ मुझे और श्वेता को मार चुकी थी।
जब देखा कि वो नहीं मान नहीं रही है तो मैंने उसको धक्का दिया।
वो सोफे की तरफ गिरी पर उसने मेरे बाल नहीं छोड़े और मैं भी धड़ाम से सपना के ऊपर ही गिर गया।
इसी हड़बड़ाहट में मेरे बाल सपना के हाथ से छूट गए।
मैं उठ कर भागने लगा तो उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया।