दहेज की कार में सलहज की चूत सेवा

मेरे साथ नाचने-गाने व डिनर करने के बाद सभी रिश्तेदार घर जाने लगे थे।
मेरे एक साले की पत्नी जिसका नाम कविता था.. अकेले आई थी। वो हमारे शहर लखनऊ की थी, साले साहब शहर के बाहर थे।
सभी लोगों को घर छोड़ने के बाद मुझे उन्हें घर छोड़ने जाना था।

तो ससुराल से मिली कार से ही उन्हें छोड़ने चला गया।
भाभी जी की उम्र 34 साल की थी.. लेकिन देखने में वो 27 की लगती थीं।
वो एक प्रोफ़ेशनल कॉलेज की अध्यापिका थीं।

मेरा साला एक एमएनसी में मैंनेजर है.. और ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था।

कार में बैठते ही मुझे एक बार उनकी आँखों में एक शरारत सी नजर आई.. उनके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी।
कार में मैंने उनसे पूछा- बहुत खुश दिख रही हो भाभी.. क्या कोई ख़ास बात है?
भाभी- खुश क्यों नहीं होऊँगी.. जब तुम्हारे जैसा इन्सान मेरे साथ हो।

मैं थोड़ा सोच में पड़ गया कि ये क्या कहना चाहती हैं।
मैंने पूछा- आपका क्या मतलब है.. मैं समझ नहीं पाया।
भाभी- हाँ जी.. तुमने क्या सोचा कि मेरी कुछ समझ में नहीं आएगा कि तुम क्या हो.. जो लड़का कई औरतों का चहेता हो.. वो तो कुछ खास ही होगा।

मैंने अनजान बन कर पूछा- मैं समझा नहीं.. आप क्या कह रही हो?
भाभी ने अपना हाथ मेरे उस हाथ पर रखा जिससे मैंने गेयर पकड़ा हुआ था। उनके छूते ही मैंने कहा- आपका हाथ कितना गर्म है।
उन्होंने कहा- तुम्हारी भाभी भी तो गर्म है।

मैं समझ चुका था कि ये अपनी सेवा कराना चाहती है।
तब तक हम उनके अपार्टमेन्ट के बेसमेंट में बनी कार पर्किग में पहुँच गए थे।

कार को बन्द करके.. उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए.. मैंने अपना दूसरा हाथ उनके हाथ पर रख दिया।

वो मेरी तरफ़ बढ़ी.. तो मैंने भी उनका स्वागत खुली बाँहों से किया, उन्होंने भी बहुत कस कर अपनी बाँहों में मुझे बांध लिया।

उनकी जुल्फों से एक अजीब सी मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी। मैंने अपना हाथ भाभी की चिकनी कमर में डाला और प्यार से सहलाने लगा।
वो मेरे कान को अपनी जीभ से सहलाने लगी।
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फ़िर अचानक उनका चेहरा मेरे चेहरे के सामने आ गया और हम दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूमने लगे। उनके रस से भरे अधर मेरे लबों से चूसने लगे, साथ ही मैं उनके कपड़ों के ऊपर से ही उनके पूरे शरीर को भी टटोल चुका था।

मैंने कहा- भाभी बस..
तो वो बोलीं- ताव दिला कर कहा जा रहे हो राजा?
मेरा लण्ड उसे सलामी देने लगा।

कार में आगे हमें दिक्कत हो रही थी.. तो हम दोनों पीछे की सीट पर आ गए, सीट पर उन्हें लिटा कर मैं उनके ऊपर लेट गया और उनके मस्त दो कबूतरों को पिंजड़े से आजाद करके चूसने लगा, दूसरा हाथ उनके लहंगे में डाल कर उनकी चूत को सहलाने लगा।
इतनी सर्दी में भी उनकी चूत किसी भट्टी से कम नहीं थी।

उन्होंने मेरे लण्ड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ लिया था। मैंने भी बिना समय गंवाए अपने लण्ड को बाहर निकाल उनके होंठों पर रख दिया।

उन्होंने भी मेरी भावनाओं को समझा और दस मिनट तक उसे चूसा, फ़िर मेरी गोद में बैठ कर मेरे लण्ड को अपनी रसीली चूत में ले लिया।
एक जंगली बिल्ली की तरह वो मेरे चूहे से खेल रही थी।

तकरीबन पच्चीस मिनट में वो मेरे लण्ड पर चार बार झड़ गई।
अब मेरी बारी थी.. उसने मना किया कि अन्दर नहीं करना.. और मेरे वीर्य को अपने मुँह में ले लिया। सारा वीर्य चूसने के बाद उसने कार से बाहर थूक दिया।

फ़िर कपड़े पहन कर वो अपने घर चली गई।

उसके बाद कई बार मैंने उनकी चुदाई उनके घर पर की और एक बार गाण्ड भी मारी।

मुझे लगता है दोस्तो, कि महिलाएँ भी खुल कर मस्ती करना चाहती हैं.. पर एक भरोसेमन्द साथी की तलाश की कमी रह जाती है।
आपके रसीले ईमेल के इन्तजार में आपका रोहित..
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