फरवरी 2019 की बेस्ट लोकप्रिय कहानियाँ

मेरे पति ने शादी की पहली ही रात में मुझे उनके भाई के बारे में बता दिया था. उनको अपने बड़े भाई के त्याग का अहसास था, हमारी जितनी भी प्रगति हुई थी, जेठ जी के वजह से ही हुई थी. वो हमेशा जेठ जी का ख्याल रखते थे और उनकी यही इच्छा थी कि मैं भी उनका उतना ही ख्याल रखूँ.

मेरे मायके की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी, इसलिए अच्छा कमाने वाला पति मिलना, मैं अपना भाग्य समझती थी. इन सभी वजहों से भी मैं उनकी इच्छा का अनादर नहीं करना चाहती थी.

शादी के कुछ दिन तक तो सब ठीक था, जेठ जी हमारे घर खाना खाने आते, मेरे पति से बात करते और चले जाते, पर थोड़े ही दिनों बाद उन्होंने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया.

मैं घर में साड़ी ही पहनती थी, गाउन पहनना मेरे पति को पसन्द नहीं था. घर के काम करते वक्त कभी कभी पल्लू अपनी जगह पर नहीं रहता था, कभी पेट खुला पड़ जाता, तो कभी ब्लाउज में से स्तन दिखने लगते थे. मेरे जेठ जी की नजर मेरे पर ही रहती थी. उनको इस बात का इन्तजार रहता था कि कब मेरा पल्लू सरके और मेरी जवानी का खजाना उन्हें देखने को मिले. पर अभी तक जेठ जी ने मुझे गंदे इरादों से छुआ नहीं था, पर आगे चल छुएंगे नहीं, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं थी. मैं मेरे पति को भी नहीं बोल सकती थी, कहीं उनको ऐसा ना लगे कि मैं उन दोनों के बीच में गलतफहमी पैदा करने की कोशिश कर रही हूँ. उस स्थिति में तो मेरे पति मुझे घर से भी निकाल सकते थे.

आजकल दो तीन दिन से मेरे पति ऑफिस के काम से दूसरे शहर गए थे, तब से मैं डर डर कर ही रह रही थी. पर जिस बात का मुझे डर था, वही अभी मेरे साथ हो रहा था.

जेठ जी कह रहे थे- आज मैं तुम्हें जबरदस्त चोदूंगा और तुम्हें सब सहन करना पड़ेगा.

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काम तृप्ति का सुखद अहसास

शादीशुदा ज़िंदगी हमारी शुरू से ही डिस्टर्ब रही है। दरअसल जो कुछ मैं अपनी पति से चाहती थी, जो कुछ मैंने सोचा था, वैसे पतिदेव मुझे नहीं मिले। सुहागरात को ही वो बुरी तरह से फेल रहे। बड़ी मुश्किल से 3 मिनट टिक पाये, जब तक मैंने अपनी सुहागरात का मज़ा लेते हुये अपनी जवानी का रस छोड़ना शुरू किया, वो अपनी मर्दानगी मेरे ऊपर झाड़ चुके थे।
मुझे लगा कि चलो कोई बात नहीं, कभी कभी जोश में इंसान होश खो बैठता है।

मगर उसके बाद तो हर रात की यही बात; बड़ी मुश्किल से ये दो-तीन मिनट लगाते।
पहले तो मैं चुप रही मगर फिर धीरे धीरे मैंने इनसे कहना शुरू किया कि आप थोड़ा टाइम और लगाया करो।
इन्होंने भी बहुत कोशिश की, बहुत से उपाय किए, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात।
लंड का साइज़ अच्छा था, तनाव भी पूरा था, मगर दिक्कत टाइम की थी।

फिर होने ये लगा कि ये पहले उंगली डाल कर मेरा पानी निकाल देते, फिर अपना लंड पेलते। मगर जब कभी मैं अपनी सहेलियों से या और रिशतेदार औरतों से बात करती और वो बताती कि उनके पति तो उनके ऊपर से उतरते ही नहीं हैं, आध पौन घंटा लंड डाल कर उनको पेलते हैं, तो मुझे बड़ा दुख होता, मैं भी झूठ-मूट ही कह देती- इनका भी यही हाल है।
मगर असल में इनका क्या हाल था, वो तो मैं ही जानती थी।

धीरे धीरे मुझे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी भारी लगने लगी। मैं चाहती थी कि मुझे कोई ऐसा मिले जो टिका कर मुझे पेले। क्योंकि मेरे पति ज़्यादा से ज़्यादा 4-5 मिनट ही मुझे पेल सकते हैं, इसके बाद तो वो किसी भी तरह से नहीं रुक पाते और झड़ जाते हैं। मगर मैं कम से कम 12-15 मिनट तक लेती हूँ एक बार झड़ने में, तो मुझे तो लगता है कि या तो मेरे पति जैसे ही 2-3-4 मर्द हों जो बारी बारी मुझे पेलें ताकि मुझे भी अपनी फुद्दी में लंड की चुदाई से झड़ने का मौका मिले, या फिर कोई अकेला मर्द ही ऐसा हो जो झड़े ही नहीं, बस मैं ही झड़ूँ, और पेले जाए … पेले जाए … पेले जाए।

इसी वजह से शादी के सिर्फ दो साल बाद ही जब मैंने देख लिया कि मेरे पति में कोई दम नहीं है, तो मैंने आसपास देखना शुरू किया, और फिर मुझे मेरे जीवन का पहला बॉयफ्रेंड मिला।
हमारे पड़ोसी का ही लड़का था, 24-25 साल का था; मुझे बहुत घूरता था। पहले तो मुझे उसका घूरना बुरा लगता था, मगर जब मेरी अपनी कामुक ज़रूरत मेरे चरित्र से बड़ी हो गई, तो मैंने अपना चरित्रवान रूप एक तरफ रख कर त्रिया चरित्र दिखाना ही ठीक समझा।

जब मैं भी उसके देखने के बदले उसे वापिस देखने लगी, तो उसने भी स्माइल पास की; मैंने भी जवाब स्माइल से दिया. फिर उसने सर झुका कर विश की, मैंने भी जवाब दिया।

ऐसे ही कुछ दिन चलते रहे, तो एक दिन वो मुझे बाज़ार में मिला और मेरी मदद के बहाने मेरे घर तक आया। मैंने उसे बैठा कर चाय पिलाई, उससे कुछ बातें भी की। वैसे तो अच्छा लड़का था, रंग रूप, कद काठी, सब ठीक था, बस मुझे तो इस बात में दिलचस्पी थी कि पैन्ट के अंदर इसके पास क्या है।

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हवसनामा: मेरी चुदती बहन-1

मेरा नाम फैजान है और मैं बिहार के एक शहर का रहने वाला हूँ। गोपनीयता के चलते अपने शहर का नाम नहीं बता सकता लेकिन बस इतना समझ लीजिये कि यह शहर गुंडागर्दी और अराजकता के लिये बदनाम है।

यह बात साल भर पहले की है जब हम अपने पुराने मुहल्ले को छोड़ कर नये मुहल्ले में शिफ्ट हुए थे। मेरे परिवार में अम्मी अब्बू और एक बड़ी बहन रुबीना ही थी जिसकी उम्र इक्कीस साल रही होगी तब और वह ग्रेजुएशन कर रही थी। जबकि मैं उससे दो साल छोटा था और मैंने इंटर के बाद बी.ए. के लिये प्राईवेट का फार्म भर के काम से लग गया था।

दरअसल हमारा मुख्य घर शहर से तीस किलोमीटर गांव में था लेकिन अब्बू की टेलरिंग की दुकान शहर में थी तो हम किराये के मकान में यहीं रहते थे। इसी सिलसिले में हमें पिछला मकान खाली करना पड़ा था और नये मुहल्ले में शिफ्ट होना पड़ा था।

यूँ तो हम चार भाई बहन थे लेकिन बीमारी के चलते दो भाइयों की मौत छोटे पर ही हो गयी थी और हम दो भाई बहन ही बड़े हो पाये थे। माँ बाप दोनों चाहते थे कि हम कम से कम ग्रेजुएशन की पढ़ाई तो कर लें लेकिन मेरा खुद का पढ़ाई में कोई खास दिल नहीं लगता था तो इंटर के बाद प्राइवेट ही ऐसे कालेज से बी.ए. का फार्म भर दिया था जहां नकल से पास होने की पूरी गारंटी थी और खुद अब्बू की दुकान जाने लगा था कि उन्हें थोड़ा सहारा हो जाये।

जबकि बहन रेगुलर शहर के इकलौते प्रतिष्ठित कालेज से पढ़ाई कर रही थी. यहां जब मैं यह कहानी इस मंच पर बता रहा हूँ तो मुझे यह भी बताना पड़ेगा कि वह लंबे कद की काफी गोरी चिट्टी और खूबसूरत थी, जिसके लिये मैंने अक्सर लड़कों के मुंह से ‘क्या माल है’ जैसे कमेंट सुने थे, जिन्हें सुन कर गुस्सा तो बहुत आता था लेकिन मैं अपनी लिमिट जानता था तो चाह कर भी कुछ नहीं कह पाता था।

शक्ल सूरत से मैं भी अच्छा खासा ही था लेकिन कोई हीरो जैसी न पर्सनालिटी थी और न ही हिम्मत कि गुंडे मवालियों से भिड़ जाऊं. फिर मेरी दोस्ती यारी भी अपने जैसे दब्बू लड़कों से ही थी।

कुछ दिन उस मुहल्ले में गुजरे तो वहां के दबंग लड़कों के बारे में तो पूरी जानकारी हो गयी थी और खास कर राकेश नाम के लड़के के बारे में, जो उनका सरगना था। उनमें से ज्यादातर हत्यारोपी थे और जमानत पर बाहर थे लेकिन उनकी गुंडागर्दी या दबदबे में कमी आई हो, ऐसा कहीं से नहीं लगता था। उनमें से ज्यादातर और खास कर राकेश को राजनैतिक संरक्षण भी हासिल था, जिससे उसके खिलाफ पुलिस भी जल्दी कोई एक्शन नहीं लेती थी।

और रहा मैं … तो मेरी तो हिम्मत भी नहीं पड़ती थी कि जहां वह खड़ा हो, वहां मैं रुकूं… जबकि वह कुछ दिन में मुझे पहचानने और मेरे नाम से बुलाने लगा था। परचून की दुकान पे खड़ा होता तो जबरदस्ती कुछ न कुछ ले के खिला ही देता था। थोड़ी न नुकुर तो मैं करता था लेकिन पूरी तरह मना करने की हिम्मत तो खैर मुझमें नहीं ही थी।

उसकी इस कृपा का असली कारण तो मुझे बाद में समझ में आया था कि वह बहुत बड़ा चोदू था और उसकी नजर मेरी बहन पर थी। उसकी क्या मुहल्ले के जितने दबंग थे, उन सबकी नजर उस पर थी और शायद राकेश का ही डर रहा हो कि वे एकदम खुल के ट्राई नहीं कर पाते थे।

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सर बहुत गंदे हैं-1

यह कहानी मेरे पड़ोस की मेरी भाभी की है जिनकी पिछले साल शादी हुई है। वह बहुत ही सुन्दर है। मेरी उनके साथ बहुत अच्छी दोस्ती है। मैं रोज उनके साथ बातें करता हूँ। उन्हें डायरी लिखने का शौक है। उनके पति कम पढ़े लिखे हैं और दुबई में नौकरी करते हैं। एक दिन संयोग से उनकी डायरी मेरे हाथ लग गई और मैंने उनकी जीवन की एक सच्ची घटना पढ़ ली। उसे उन्हीं के शब्दों में लिख रहा हूँ।

मेरा नाम अंजलि है। मैं बिहार के एक गांव में हायरसेकेंडरी स्कूल में पढ़ती थी। तब मैं साढ़े अठारह साल की थी. हमारी बोर्ड की बारहवीं की परीक्षा शुरू हो रही थी। आज परीक्षा का पहला दिन था और इसमें इंग्लिश का पेपर था। मैं शुरू से ही इंग्लिश में बहुत कमजोर थी। परीक्षा हमारे पड़ोस के गांव के स्कूल में हो रही थी।

मैं अपनी सहेली पिंकी के साथ परीक्षा देने के लिए गई थी। पिंकी मेरी बहुत अच्छी सहेली है लेकिन पिंकी बहुत ही निडर और शरीफ लड़की है। एक बार एक लड़के तरुण ने हम दोनों को छेड़ने की कोशिश की तो पिंकी ने उसकी वह हालत बनाई कि फिर उस दिन के बाद वह कभी सामने नहीं आया।
जब मुझे याद आता है तो मैं सोचने लगती हूँ कि मैं कभी भी ऐसा नहीं कर पाऊंगी।

हमारी क्लास में संदीप और दीपाली पढ़ने में बहुत तेज थे लेकिन मैं और पिंकी हमेशा खेलकूद में लगी रहती थी इसलिए हम लोग पढ़ाई में बहुत कमजोर थीं।

सेक्स के विषय में मुझे ज्यादा तो जानकारी नहीं थी लेकिन एक बार मैंने अपनी मां को गांव के ही एक आवारा लड़के सुन्दर के साथ सेक्स करते हुए देखा था जिसमें मेरी मां उस आवारा लड़के का लंड चूस रही थी और जब लंड से कुछ सफ़ेद-सफ़ेद निकलना शुरू हुआ तो माँ उसे पी गई थी।
कुछ सहेलियों से सेक्स के विषय में थोड़ा-बहुत सुना था कि लड़के लोग लड़कियों की चूत में लंड को घुसाकर चोदते हैं जिसमें लड़कियों को बहुत दर्द होता है लेकिन बाद में लड़कियों को अच्छा लगने लगता है।
बाकी क्लास में कभी-कभी टीचर हम लोगों के शरीर पर हाथ फेर लिया करते थे। इससे ज्यादा हम लोग यही जानते थे कि सेक्स करने से पेट में बच्चा आ जाता है।

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अजीब दास्ताँ है ये

ऐसे ही मेरी कहानी लिखने का सिलसिला चल रहा था, जब मुझे एक दिन एक लड़की का ईमेल आया उसने मेरी कहानी पढ़ी और पढ़ कर मुझे तारीफ का ईमेल किया। मैंने भी उसका शुक्रिया किया, ऐसे ही धीरे धीरे बात बढ़ने लगी, तो मुझे पता चला कि वो लड़की मेरे शहर से कोई 100 किलोमेटर दूर रहती है।

फिर एक दिन उस लड़की ने अपनी पिक्स भी मुझे भेजीं। एक बहुत ही सुंदर, दूध से भी गोरी, बड़ी प्यारी से 18 साल की लड़की। मेरे बच्चों जैसी!
अब मेरी कोई बेटी नहीं है तो मुझे उस पर बहुत प्यार आया। इतना प्यार आया कि मुझे ऐसे लगने लगा जैसे वो मेरी ही बेटी हो और बस मुझसे दूर कहीं हॉस्टल में या पीजी में रहती हो।

मगर सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि हमारी जान पहचान अन्तर्वासना डॉट कॉम पर मेरी कहानी पढ़ने की वजह से हुई थी, तो मुझे तो ये था कि कोई मेच्योर लड़की होगी, इसी लिए मैंने उस से शुरू से ही अपनी बातचीत ऐसी रखी जिसमें बहुत से असंसदीय शब्दों का प्रयोग किया। मगर उसने कहा कि उसे ये शब्द सभी पता हैं और वो सब कुछ जानती है. मगर वो इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, उसे अच्छा नहीं लगता बात करते हुये गांड, फुद्दी, लंड या मादरचोद बहनचोद जैसी शब्दावली का इस्तेमाल करना।

यह बात मुझे बाद में पता चली कि वो सिर्फ एक 18 साल की लड़की है। यह जानने के बाद मेरा उस लड़की के लिए नज़रिया काफी हद तक बदल गया। साफ बात है, पहले तो मैं उस पर अपनी ठर्क मिटाता था, मगर बाद में मुझे लगा कि नहीं … यह लड़की इसलिए मेरी दोस्त नहीं बनी है कि मैं उस पर अपनी गंदी निगाह डालूँ। मगर जब हम दोनों में किसी कहानी को लेकर बात होती, तो स्वाभाविक तौर पर मुझे उसके साथ बहुत खुल कर बात करनी पड़ती. और जब मैं लिखता ही सेक्सी कहानियाँ हूँ, तो हमारी बात चीत का असल मुद्दा सेक्स ही होता।

अब मैं उसे अपने बेटी की तरह चाहता भी था और उस से सेक्सी बातें भी करता था। उसके मन में क्या चल रहा था, मुझे नहीं पता; मगर मेरे मन में बहुत हलचल थी, बेचैनी थी। मैं खुद यह नहीं समझ पा रहा था कि मैं उस किस नज़र से देखूँ कि बाप की नज़र से या एक ठर्की मर्द की नज़र से। तो मैंने सोचा इस रिश्ते को कोई नाम देकर देखता हूँ।
मैंने उससे कहा कि वो मुझे पापा कह कर बुलाया करे।
उसके बाद वो हमेशा मुझे पापा ही कहती, मैं भी उसे बेटा ही कहता।

मगर इससे भी मेरी कश्मकश का कोई हल नहीं निकला। मैं उसे बेटी कह कर भी चोदने के सपने देखता। मन में सोचता कि अगर कहीं ऐसी बात बने कि वो मुझसे सेक्स करने को मान जाए तो मुझसे ज़्यादा दूर तो वो है नहीं; इसलिए मैं वहाँ उसके पास चला भी जाऊंगा.
पर फिर सोचता, वो तो मुझे पापा कहती है, क्या मैं उसको चोद पाऊँगा।

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