अफ्रीकन सफ़ारी लौड़े से चुदाई-4

पीटर का लंड धीरे धीरे तनने लगा था और मेरी भी नींद खुल चुकी थी इसलिए मैं पीटर के इतने मोटे लंड को हाथ लगाये बिना नहीं रह पाई और मैं पीटर के लंड को अपने हाथों से पकड़ कर सहलाने लगी पर उसका लंड को बिल्कुल खम्बे की तरह खड़ा हो चुका था और बड़ा अजीब सा लग रहा था।
मैं लेटी लेटी ही पीटर से खड़े लंड पर हाथ फेर रही थी।

थोड़ी ही देर में पीटर ने किताब साइड में रख दिया और मेरी तरफ मुँह घुमा लिया।
कुछ ही देर में मैंने पीटर को फिर से उसी अवस्था में लाया और उसके पेट पे अपने घुटने रख दिए और साथ ही साथ उसका लंड सहलाने लगी।

पीटर भी अपने हाथ पीछे की तरह ले गया और मेरे कूल्हे सहलाने लगा। उसके पत्थर से हाथ जब चूतड़ों को सहला रहे थे तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरे चूतड़ों पर कोई पत्थर घिस रहा है।

उसके हाथों में मेरे पूरे चूतड़ बड़ी आसानी से आ गए और वो किसी नर्म गेंद के तरह उसे दबाने लगा।
मैं पीटर के होंठों के पास आई और पीटर फटाक से मेरे होंठों की ओर लपका और मुझे चूमने लगा।मैंने तो सिर्फ एक कदम बढ़ाया था पर पीटर ने तो इशारा करने से पहले से इशारे का मतलब समझ लिया।

मैं भी उसके मोटे मोटे होंठ चूसने लगी। पहली बार ऐसे होंठ चूस रही थी जो बहुत मोटे थे, नहीं तो ज्यादातर मर्दों के होंठ सूखे पतले से होते हैं।

मैं भी अपनी चुम्मा-चाटी का पूरा लुत्फ़ ले रही थी, वहीं पीटर मेरे होंठों से रस चूस कर तार तार कर रहा था।
जब हम किस कर रहे थे तो मैंने ध्यान दिया कि पीटर का सिर्फ लंड ही इतना लम्बा नहीं, इसके होंठ और जीभ भी आम मर्दों से बड़ी है। मैंने मन ही मन सोचा जब यह मेरी चूत चाटेगा तो पता नहीं जीभ इस बार कहाँ तक घुसायेगा।

खैर छोड़ो, जहाँ तक भी घुसाये, मज़ा तो हम दोनों को ही आना था इसलिए इस बारे में ज्यादा सोचने से क्या फायदा।
वैसे भी दोनों सोकर उठे थे और दोनों के मुँह से अजीब ही गन्ध आ रही थी इसलिए हमने इस चूमाचाटी को यहीं विराम देने में भलाई समझी और एक दूसरे के होंठों को अलविदा कहा यह सोच कर कि इनका पूर्ण मिलाप बहुत जल्द होगा।

मैंने सोचा अब उठ ही गई हूँ तो ब्रश कर लेती हूँ। इसलिए मैंने पीटर की पकड़ को कमजोर करने की कोशिश की, पर लगता था कि पीटर और उसका लंड दोनों नहीं मानने वाले ! दोनों अपने जगह पर तने हुए थे, मेरी कोशिश का दोनों पर कोई असर नहीं हुआ।

पीटर ने मुझे पकड़ा और मेरे छाती के बल मुझे औंधा बिस्तर पर लेटा दिया।
मेरे मम्मे नीचे दब रहे थे और मेरे कूल्हे पीटर से हाथों से दबकर लाल हो गए थे।
मुझे समझ आ गया था कि अब यह मेरी गाण्ड मारकर ही गुड मॉर्निंग करेगा।

मुझे बीती रात का सविता की गांड की चुदाई का नज़ारा याद आ गया और मैं मन ही मन विचलित होने लगी, सोचा कि आज की सुबह मेरी खैर नहीं, यह काला नाग सा लण्ड सच में मेरी गाण्ड फाड़ ही डालेगा।
पीटर ने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों कूल्हे पकड़ लिए और उन्हें बाहर की ओर खींचने लगा।

धीरे से उसने अपनी एक उंगली मेरी गांड में डाली और फिर थूक लगा कर छेद में अंदर-बाहर करने लगा।
मुझे डर लगने लगा था कि अब क्या होगा, अभी तो मेरी ठीक से नींद भी नहीं खुली थी, मैं अपने आप को कोसने लगी कि क्या ज़रूरत थी सुबह सुबह इस काले लंड के साथ अठखेलियाँ करने की!

धीरे से पीटर ने एक से दो उँगलियाँ कर दी और रफ़्तार भी बढ़ा दी, उसकी दो उंगलियाँ भी किसी लंड से कम नहीं थी जो इतनी अंदर तक जाकर मेरी गांड के मज़े लूट रही थी।

थोड़ी ही देर में अपनी उंगलियों की जगह अभी जीभ लगा दी और मेरी गांड के आसपास चाटने लगा और जीभ घूमाने लगा।
मेरी सिसकारियाँ निकलने लगी- उह… उउउई… उउह्ह्हा… आआअह्ह्ह्ह्ह आआआअह्ह्ह्ह !
पर पीटर को जरा का भी फर्क नहीं पड़ा।

मैंने अपने पीछे के हाथों से पीटर के सर को धकेलने की कोशिश की पर मैं अपने हाथ वह तक पहुँचने में नाकाम रही और पीटर ने अपना काम ज़ारी रखा।
पीटर ने अपनी जीभ मेरी गाण्ड के अंदर नहीं डाली और छेद के बाहर अपने जीभ से कुछ देर तक खेलता रहा और उसके बाद उसने अपना औज़ार अपने हाथ से पकड़ा और मेरी गांड के पास ले आया।

पीटर ने बगल में रखे दो तकिये उठाए और मेरी मम्मों के नीचे डाल दिए और मेरी कमर के मुझे पकड़ कर थोड़ा ऊपर उठा लिया और मुझे घुटनों के बल लेटा दिया।
मेरी छाती अभी भी लेटी हुई थी पर मेरे कूल्हे उठे हुए थे और पीटर घुटनों के बल खड़ा था।

क्योंकि मैं झुकी हुई थी, मेरी गांड का छेद थोड़ा खुल गया और पीटर को लंड घुसाने में आसानी हो गई।
यह आईडिया देख मैं समझ गई कि ‘जूही आज तेरी गाण्ग़ फाड़ू चुदाई होने वाली है ! वो भी किसी नौसिखिये के हाथों नहीं, ऐसे मर्द के हाथों जिसे चुदाई का हर पैंतरा बखूबी पता है।’

पीटर ने अपना लंड मेरी गाण्ड के पास सटाया और मेरी शरीर में कंपकंपी शुरू हो गई क्योंकि मुझे पता था कि बहुत ज़ोर का दर्द होने वाला था।
पीटर ने अपने लंड का टोप मेरी गांड के पास सटा रखा था और इसका एहसास मुझे हो रहा था।

पीटर धीरे धीरे अपना मोटा लंड मेरी गांड में घुसाने की कोशिश करने लगा था। उसका लंड का आगे का मोटा टोपा जो किसी बड़े आलूबुखारे जैसा दिख रहा था, धीरे धीरे मेरी गांड में घुस रहा था और मुझे उसका एहसास दर्द के माध्यम से होने लगा था।
जैसे ही उसके लंड के टोपे का बड़ा भाग़ जो टोपे के आखिरी सिरे होता है मेरे अंदर जाने लगा मेरा दर्द और भी ज्यादा बढ़ने लगा और मैं दर्द से कराहने लगी- आअह्ह्ह्ह्हा… ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… हाआआयय्यय्य्यीईई… ऊऊऊह्ह्हह्ह… अह…उउउइज्ज्ज…
पर पीटर पर मेरे दर्द का जरा भी असर नहीं पड़ा और फिर वो हुआ जिसका मुझे डर था।

चूत चुदाई की कहानी कहानी जारी रहेगी।
आपकी प्यारी चुदक्कड़ जूही परमार
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